Monday 16 July 2018

तू बस तू .....

तू प्यार नहीं है मेरा ,
तू इश्क नहीं है मेरा ,
तू जूनून है , अक्स है मेरा

तू कोई संबंधी नहीं
कोई हक , अधिकार नहीं
तू सच है , सम्मान है मेरा

तू खालीपन नहीं है मेरा
तू कोई आदत नहीं है मेरा 
तू अरदास है , पुकार है मेरा 

तू कोई व्यापार नहीं
तू कोई व्यवहार नहीं
तू आईना है , प्रत्यक्ष है मेरा

तू कामना नहीं है मेरा
तू तमन्ना नहीं है मेरा
तू शाश्वत है , यथार्थ है मेरा

मैं मंजिल नहीं, सफर हूँ
तू रास्ता है , मैं सहर हूँ
मैं एहसास नहीं , जज्बात हूँ
तू ख्याल है , मैं ख्वाब हूँ

खामोशी में गुफ्तगू है तू
सुकून का एक नाम है तू
इस वक्त का चरम है तू
सात्विकता का पराकाष्ठा है तू

तू कोई शब्द , कोई अर्थ नहीं
एक गीत है , उमंग है मेरा
बस मेरे नाम में , नाम है मेरा  !


Thursday 5 July 2018

कुछ नहीं चाहिए

मेरे प्यार का हक यूँ जया ना कर 
अपनापन जताकर पराया ना कर 
जिंदगी तेरे यादों की याद में गुजर जाए 
बस इत्ती सा ही प्यार चाहिए तेरा 

नजर में बस तू ही है एक सदा 
दूसरा कोई फिर भाया नहीं 
दिल जो एक बार टूट गया 
फिर किसी से अब तक जुड़ा नहीं 
जिद्दी है मेरा दिल मेरी तरह 
रोता है खुद में , ना करता कलह 
बस जाने के पहले एक मुस्कराहट चाहिए 
बस नाम मात्र का तेरा प्यार चाहिए 

तेर होने से जो गुलजार है 
ना होने से है सब बेकार 
इल्तजा,वफा, इज्जत सब है 
पर बिन तेरे मैं हूँ लाचार 
तेरा ना इश्क चाहिए , ना व्यापार 
ना तू चाहिए , ना तेरा कोई किरदार 
बस जज्बातों को एक कद्र चाहिए 
तेरे आँखों में खुद का सम्मान चाहिए 

एक तू है , एक मैं हूँ 
दो जिद है , दोनों जिद्दी है 
सबको शायद अधिकार चाहिए 
रिश्तों को बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए !


Wednesday 4 July 2018

टूटता इश्क ......

ये हवा का दामन थामकर उड़ा है 
ये निगाहें भी बेबस होकर खड़ा है 
कोई जाओ संदेशा पहुँचा दो उनको 
ये जो दिल है अब भी जिद पे अड़ा है 

ना माँगा कुछ , ना चाहिए कुछ 
ना कोई शर्त रखी , ना बोला कुछ 
नुमाइश की , गुजारिश की 
उनपे फक्र किया , ऐतबार किया 
मगर सच्चे दिल की तालीम उसे कहाँ 
कोई कह दो उनको जुनून फिर से उमड़ा है 
ये जो इश्क है फिर से अपनी जिद पे अड़ा है 

कसमें , वादें , वफा , सब बेकार है 
जो कद्र नहीं तो सब ही निराकार है 
कोई समझे , समझाए आखिर कब तक 
एक तरफा रिश्ता निभाए आखिर कब तक 
जज्बात आधार है , रिश्तों का करार नहीं 
कोई जाओ बता तो उनको वक्त हम सबसे बड़ा है 
ये अपने कैंची से रिश्तों को कुतरने बेसब्री से खड़ा है 

एहसास के आलिंगन में कुछ तो सीख जाओ 
जो मिला है मौका फिर तो जीत जाओ 
सामने होकर भी जुबां खामोश खड़ा है 
टूटा हुआ इश्क दूर जाने को खड़ा है !


Monday 25 June 2018

वो प्यार था हमारा !

ना थे तुम मेरे , ना था मैं तेरा
मगर इक रिश्ता था हमारा
वो प्यार था हमारा !

ना तुम सही थे, ना हम गलत थे
जो था नहीं अनुकूल
वो वक्त था हमारा !

ना तुमको शिकवे थे, ना मुझको शिकायत थी
जो था कसूरवार तो
वो आँखें थे हमारा !

तुम कह नहीं पाए, मैं समझ नहीं पाया
जो रह गया खोया कहीं
वो इजहार था हमारा !

हम भी निकलें थे, तुम भी निकले थे
 जो मिला नहीं मंजिल से
वो सफर था हमारा !

जो था कहीं गुमा,  जो था कहीं चर्चित
जो सबको था विदित , जिससे थे हम अनभिज्ञ
वो दिल का बात था हमारा !

उम्र के राहों में , बस्ती गुजर गयी
जो खो गया कहानी में
वो प्यार था हमारा !


Tuesday 19 June 2018

इश्क को समझो .....

नदियों को पता है मंजिल समुन्दर है 
मगर प्यार किनारों से सफर भर करती है 
समुन्दर को पता है लहरों पे हक़ नहीं उसका 
मगर फिर भी नुमाइश उम्र भर करता है 

चाँद को देखो , चाँदनी भी उसकी नहीं 
फिर भी रौशन रातों को करती है 
बारिश को देखो , प्यार आसमां से कर भी 
तृप्त धरा को ही करती है 

हवा चाहकर भी खुद को रोक नहीं सकता 
फूल चाह कर भी सुगंध छुपा नहीं सकता 
ये दिल है , आना किसी पर लाजिमी है 
दिल चाह कर भी खुद को रोक नहीं सकता 

कौन कहता है , किसी को प्यार कर 
प्यार को पाना जरूरी है 
प्रकृति ने प्यार को निभाना सिखाया है 
यूँ कह देने से कोई वफा-बेवफा नहीं हो जाता 
इश्क को समझो , इश्क ने हमेशा ही 
दूसरों के लिए जीना सिखाया है !

Friday 15 June 2018

एक शरारत करने दो

एक शरारत करने दो
खुद से मुझको दो बातें करने दो
अभी नहीं तो कभी नहीं
कच्ची उम्र की एक गलती करने दो
एक शरारत करने दो  !

मैंने सपनों में तुमको देखा है
तुमको अपना होते देखा है
रूह की ना जिस्म की
आँखों का होते देखा है
नींदों में भी अब तुम होती हो
नजरों में भी तुम ही होती हो
अब तो खुलकर आहें भरने दो
एक शरारत करने दो !

जुल्फों से खेलने की चाह रही है
बारिश में संग भींगने की चाह रही है
रखूँ जो सर तेरी मखमली गोद में
तेरा बालों को सहलाने की चाह रही है
झुके नजरों से तुम , उठे नजरों से मैं
नैना थम चुकी जो उस प्यार के पल में
हमेशा वो जीने की चाह रही है
ख्वाहिश को दिल के आँगन आने दो
एक शरारत करने दो !

जो हो हाथों में तेरा हाथ कभी
बाहों में भरने की चाह रही है
एक छोटी सी चुम्बन तेरे माथे पे
कब से देने की चाह रही है
चुम्बन के उस प्यार के एहसास को
तेरे होने की चाह रही है 
ये जो हक है , अधिकार है
ये जो इज्जत है , विश्वास है
है मेरा मगर , तेरा भी उतना है
मेरा अभिमान को तेरा होने की चाह रही है
वक्त गुजर जाए , इससे पहले कुछ तो करने दो
एक शरारत करने दो !

लट को आँखों पे गिरते देखा हूँ
तुम्हें उसे सँभालते देखा हूँ
हाथ फिरे जब जब तेरे गालों पर
लटों को अपना बनते देखा हूँ
हो जो नजरें यूँ पास पास
साँसों को तेज होता देखा हूँ
होकर नजरों के इतने पास
खुद को असहज होते देखा हूँ
पर, साँसों की गर्मी जो एक दूजे को बाँध जाए
तोड़ बंधनों को लब जो लब के पास आ जाए
फिर लबों को चूमकर अपना बनाने दो
एक शरारत करने दो  !

इस उम्र में थोड़ा लड़कपन तो करने दो
एक शरारत करने दो !

Wednesday 13 June 2018

काश .........!

काश!
काश मैं वैसा ही होता
काश तुम वैसी ही होती 
काश ये पल वैसा ही होता
काश ये आज वैसा ही होता

मगर ये काश तो बस काश है
एक अफसोस है एक देरी की
एक दर्द है , एक नासमझी की
आज सच है , यहाँ मेरे होने की

काश कि वक्त थोड़ा ठहरा होता
काश कि उम्र थोड़ा समझदार होता
काश कि चिंता ना होती कल की
काश कि भ्रम ना होता कल का

देर कर दी थी मैंने जताने में
देर कर दी तुमने भी बताने में
देखो ये याद भी कितना बेवफा निकला
भुला दिया यथार्थ को खुद को बनाने में

काश कि वक्त को थोड़ा पढ़ना आता
काश कि ख़ामोशी को थोड़ा जानना आता
काश कि आँखें खुलती तेरी बाँहों में
काश कि मुझको तेरा होना आता

एक जिंदगी है तेरे बगैर , एक है संग तेरे 
एक समय का सच है , एक है ख्वाब मेरे 
एक पिटारा है गुफ्तगू का दो दिल में 
एक में चेहरा तेरा है , दूसरे में है मेरे 

काश कि वो वक्त फिर से आता
काश कि ये मोहब्बत एक बार और होता 
काश कि तुमको साँसों को गढ़ना आता 
काश कि मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा होता 

काश! काश कि ये काश शब्द जेहन में ना होता 
काश! काश कि ये काश का कोई अर्थ ना होता ! 

Thursday 7 June 2018

देर कर दिया मैंने .....

देर कर दिया मैंने-
देर कर दिया मैंने तुमसे मिलने में 
देर कर दिया मैंने तुम्हें चाहने में
देर कर दिया मैंने चाहत जताने में
देर कर दिया मैंने तुम्हें बताने में
देर कर दिया मैंने-
हाँ , देर कर दिया मैंने
तुमसे और सिर्फ तुमसे मोहब्बत करने में

वो बात जो दिल में आयी थी
वो बात जो मैंने छुपाई थी
वो चेहरा जो नजरों में समाया था
वो एहसास जो रातों में जगाया था
था अनजान और नहीं भी
तुम थी दिल में और नहीं भी
पर देखो क्या कर दिया मैंने
हाँ, देर कर दिया मैंने
अपने इश्क की आगाज को समझने में

यूँ जिसे छुप छुप कर देखता था
जिसकी बातें चुप चुप कर करता था
आज जब जान गयी वो
इस इश्क को जान गयी वो
मगर देर हो गयी अब
किसी और की हो गयी अब
अपना पहला प्यार खो दिया मैंने
हाँ , देर कर दिया मैंने
अपने इश्क को यहाँ पाने में

जानती हो तुम भी , मैं भी
मुझसे बेहतर कोई नहीं
तुमसे बेहतर कोई नहीं
क्या सच में इतना देर कर दिया मैंने ?

Thursday 31 May 2018

खत.....

खत !, मैंने एक खत लिखा उसे
मैंने अपनी भावनायें लिखा उसे
मैंने अपनी सोच लिखा उसे
मैंने अपना अरमां लिखा उसे
मैंने वो पुकार लिखा उसे

मगर , मगर वो तो खत है
खत है , जो एक कागज है
स्याही से लिपटा कागज है
वो जज्बातों का आकार है
आकार शब्द है उनपे
शब्दों का अर्थ है उनपे
एक समझ की अभिलाषा है उनकी
कोई पढ़े , इत्ती सी चाहत है उनकी
मगर , कौन पढ़ेगा उसे ?

खत !, मैंने एक खत लिखा
पहला अक्षर उसका नाम लिखा
मगर मोबाइलों के दौर में खत की कद्र कहाँ
मेरे और मेरे एहसासों की उनको कद्र कहाँ

खत !, मैंने जो एक खत लिखा
मेरे बटुए की रौनक है अब वो !

Monday 28 May 2018

चाहत बहुत है !

क्यों करते हो बेवफाई ,
दिल रोता बहुत है
चाहा है टूटकर इस कदर कि
उनमें वफ़ा बहुत है !

जमाने में छोड़कर खुद को
तुम्हें अपनाया बहुत है
जो ठुकराया है लोगो ने
दिल को समझाया बहुत है
रह कर बेपरवाह खुद मगर
परवाह किया बहुत है
क्यूँ ठुकराते हो किसी दिल को
इसमें चाहत बहुत है !

जिसकी नजरों ने सींचा है तुम्हें
शब्द जिनके आसक्त करता है तुम्हें
जिनके ख्यालों में तेरी अदायें ढलती है
जिनके मन चित्र में केवल तू पलती है
चाहा है जिसने सिर्फ और सिर्फ तुम्हें
माना है जिसने अपना आदिशक्ति तुम्हें
जिनके लिए लफ्ज तेरा आदेश है 
जिनके लिए यौवन तेरा चरितार्थ है
क्यूँ दूर रहना चाहते हो ऐसे दिल से
इस दिल में इल्तजा बहुत है !

मिलता है जग में सबकुछ यहाँ मगर
सच्चे प्यार की कमी बहुत है
सब चाहते हैं खुश रहना यहाँ मगर
खुशियों की कमी बहुत है
दो दिल जुड़ जाये तो हर्ज कैसा फिर
तन्हा दिल की तादाद बहुत है
जो ये एक दिल है , मानो तेरा ही है
तेरे लिए इसमें इज्जत बहुत है

ख्वाब भी अपना माना है तुम्हें
नींद ने भी सहचर चुना है तुम्हें
ये जिस्म भी तेरे रूह का आदि है
सुकून भी तेरे चौखठ का आदि है
इश्क ने अपना अस्त माना है तुम्हें
खोकर सबकुछ जैसे पाया है तुम्हें
साँसें भी अब तुझमें बसने लगी है
जी भी तुमसे ही लगने लगी है
जो ये दिल है, है ये बेताब बड़ा
इसमें तू जँचती बहुत है !

इस जग में राग-द्वेष बहुत है
इश्क में यहाँ संघर्ष बहुत है
क्यूँ  हो दूर ऐसे दिल से
जिसने दिया तेरे लिए इंतहा बहुत है ! 

Friday 18 May 2018

वो शब्द मेरे कहते हैं ....

जो ना हम कह पाए
वो शब्द मेरे कहते हैं
जो ना हम जी पाए
वो शब्द मेरे कहते हैं

उलझनों का है एक कारवाँ
विचारों का है एक कारवाँ
बीच में मैं यूँ फँसकर
असमंजस में यूँ फँसकर
कह दिया हूँ कुछ मगर
फिर भी कुछ ना कहा
अब जो बचे खुचे हैं
वो शब्द मेरे कहते हैं

तुम भी समझो जो कहते हैं
जियो जैसे शब्द मेरे जीते हैं
जो ना हम कह पाए
वो शब्द मेरे कहते हैं !

Saturday 12 May 2018

अभी बाकी है ......

अभी बाकी है ,
तुमसे मोहब्बत करना 
तुमसे और ज्यादा मोहब्बत करना 

अभी बाकी है , 
तुमसे इजहार करना , 
वो इल्तजा , वो प्यारी बातें करना 

अभी बाकी है ,
एक कहानी का बनना 
मेरा प्रिय बनना , तुम्हारा प्रेयसी बनना 

अभी बाकी है ,
आँखों का तकरार होना 
साँसों की गुफ्तगू होना 

अभी बाकी है ,
बिन कहे बातों का समझना 
ख्वाबों का दिल के आँगन पलना 

अभी बाकी है ,
एक दूजे पे हक़ जताना 
मीठी नोक-झोंक का होना 

अभी बाकी है ,
तुम्हारा मेरा होना , मेरा तुम्हारा होना 
तुम से आप का होना 

अभी बाकी है ,
मेरा सँवरना , तुम्हारा सँवरना 
हमारे रिश्तों का सँवरना 

अभी बाकी है , 
एक जुनून बाकी है 
तुम्हारे मोहब्बत का जुनून बाकी है !

रह गयी फिर

रह गयी फिर ,
फिर वो लम्हें अधूरी , वो बातें अधूरी
तुम अधूरी , तुम्हारी बातें अधूरी

तुम भी हो , मैं भी हूँ , कुछ है मगर
ना पूरा मैं समझा , ना तुम समझ पायी
कुछ था , जो कहना था , सिर्फ तुमसे
कुछ कह गए , कुछ रह गए
और रह गयी फिर ,
दो साँसों की गुफ्तगू अधूरी

नासमझ तुम भी हो , नासमझ मैं भी हूँ
बेवजह तुम भी हो , बेवजह मैं भी हूँ
मगर जो है , कुछ है , दिल का है
थोड़ा तुमसा है , थोड़ा मुझसा है
है हम दोनों के ही दिल में है
मगर अधूरा है , हाँ अधूरा है

सखा है कोई तुम्हारा , रागिनी है कोई मेरी
जो शिकवा है तुम्हारा , वो इल्तजा है मेरी 
है , स्पष्ट है मगर , अनजाना सा राज है
खबर है तुमको भी , खबर है मुझको भी
फिर भी वो राज है ,  बस वही एक बात है
कितने कर गए , कितने जी गए
मगर रह गयी फिर भी
हमारी वो पहचान अधूरी 

रह गयी फिर ,
मेरी बातें , मेरी आरजू
मेरे ख्वाब , मेरे ख्याल
फिर से , फिर से अधूरी !!

Friday 23 March 2018

इश्क , बस इश्क है , इश्क विकल्प नहीं !!

जो हो तुम हो , तुम्हारा कोई विकल्प नहीं
इश्क , बस इश्क है , इश्क विकल्प नहीं

उम्र के संग-संग कुछ-कुछ  बदलने लगते हैं
हमको तुमको सबको, कोई न कोई,
कभी ना कभी, अच्छी लगने लगते हैं
जिससे कोई पहचान नहीं , जिसे हम जानते नहीं
फिर भी वो जैसे, अपना लगने लगते हैं
थोड़ी सी डर , फिर थोड़ी सी हिचक
फिर नैनों में वो बसने लगते हैं
उससे बेहतर कोई और नहीं, उसके जैसे कोई और नहीं
अपनी सारी दुनिया जैसे उस चेहरे में सिमटने लगती है
दिल के धड़कन फिर बढ़ते हैं , फिर रातें जगते कटतीं हैं
ख्वाब कहे या हकीकत कहे, दिन रात पहर सी लगती है
जो है बस वो है , दूजा कोई जज्बात नहीं
इश्क है , इस  इश्क में कोई स्वार्थ नहीं
इश्क ......

अब  दिल कुछ कुछ कहने लगते हैं
खुद की ख्वाबें बुनने लगते हैं
वो जाने-ना जाने इसकी परवाह कहाँ
खुद ही हाँ कह खुद ही शर्माने लगते हैं
कोई तो उनको कह दो जरा, कोई तो मुझको छेड़ो जरा
देखो मैं एक पंछी सा , कोई तो मुझको रोको जरा
खुद से जैसे अब हूँ शर्माने लगा
यूँ ही ना जाने क्या कुछ होने लगा
मेरा मन ख्वाबों में अब बहकता है
बिन तेरे ना कुछ अब अच्छा लगता है
जो हो तुम हो , तुमसे कोई बेहतर नहीं
इश्क  ........

यादों की चादर खोलता हूँ , सपनों का आँगन भरता हूँ
जो है तुमसे है पूरा है, बस इतना सा ही समझता हूँ
अब कोई कुछ रुचिकर नहीं , ये इश्क यहाँ बेकार नहीं
समझो तुम या ना समझो , बिन तेरे अब कोई नहीं
इश्क     ........

चाहे मिले वो , या ना मिले , पर दिल यही कहता है
जो हो तुम हो , तुम्हारा कोई विकल्प नहीं
इश्क , बस इश्क है , इश्क विकल्प नहीं !!

Friday 26 January 2018

ना जाने चाहकर तुम्हें , क्या से क्या हो गए हम !

बस बेरुखी से तेरे , अजनबी हो गए हम 
ना जाने चाहकर  तुम्हें , क्या से क्या हो गए हम !

कभी याद , कभी फिक्र होती है तेरी 
हँसता तो हूँ , पर मायूसी हो जैसे तेरी 
देख कर किसी को , वो ख्वाब याद आते हैं 
जो थे तो मेरे मगर , अमानत है तेरी 
तुम्हारी खुशी चाहकर , ना जाने कहाँ आ गए हम 
ना जाने चाहकर  तुम्हें , क्या से क्या हो गए हम !

जिरह का सिलसिला चलता है वक़्त का 
मुलाजिम बनाकर मुझे , वास्ता देता है इश्क का 
मैं तो सह भी लूँ , मगर दिल क्या करे 
तथ्य के सामने , सजा पाता है चाहने का 
दिल से हारकर , कितना गुमनाम हो गए हम 
ना जाने चाहकर  तुम्हें , क्या से क्या हो गए हम !

मुसलसल हैं साँसे मगर फिर भी डर है 
खुद के होने का , खुद को खोने का डर है 
व्यर्थ है सब मगर दिल और दिमाग को कौन समझाए 
इश्क तो है नहीं मगर फिर भी उसके खोने का डर है 
एक तुम्हें पाने को , कहाँ से कहाँ आ गए हम 
ना जाने चाहकर  तुम्हें , क्या से क्या हो गए हम !

Friday 19 January 2018

कुछ बदलकर नजर को यूँ देखो तो
सच भी नजर आ जाए , झूठ भी नजर आ जाए !

शिकवे कर के उनसे क्या करोगे
आज है , क्या पता कल कहाँ चला जाए !

इज्जत चाहिए हर किसी को यहाँ
थोड़ी उसको दे दो , तो खुद को भी मिल जाए !

जज्बात है , तो छुपा कर क्या करोगे
जता दो, तो शायद एक कहानी बन जाए !

लड़कर यहाँ कौन काम हुआ है आसान
साथ बैठो तो शायद कोई हल निकल जाए !

बेपरवाह रहो , हवा के रुख की पहचान तो होगी
ना जाने कौन कब तुम्हें यूँ इस्तेमाल कर जाए !

यहाँ किसी की समीक्षा करना है ना मुश्किल
कोशिश करो कि कोशिश से कोई बात बन जाये !

"अभिलाष"के मासूम दिल से अब क्या पूछोगे  
जो पढ़ लो उसे , तो शायद वो समझ में आ जाए !!

Thursday 18 January 2018

हम शहर-शहर घूमे , वो आँखों में
मैं सोचता गया , प्यार होता गया

मैं देखता रहा , वो देखती रही
सफर बढ़ता गया , प्यार होता गया

वो कहती रही , मैं सुनता गया
मैं खोता गया , प्यार होता गया

शब्द जुड़ता गया , नज्म बनता गया
रंग चढ़ता गया , प्यार होता गया

"पासवान" कहता रहा , दिल समझता रहा
कदम बढ़ता गया , प्यार होता गया !

Wednesday 17 January 2018

यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

सफर में साथ चलते , साथ नहीं छोड़ते
यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

क्या रिश्ते बनाने जरूरी हैं
क्या रिश्ते निभाने जरूरी हैं
क्या रिश्तों को नाम देना जरूरी है
क्या रिश्तों का सम्मान जरूरी है
पूछ लिया होता इन सबको खुद से
शायद तुम्हें एक नाम मिल जाता
किसी के दिल में रहने का पहचान मिल जाता
सफर में साथ चलते , जज्बात नहीं छोड़ते
यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

वादों का क्या, जो कभी किये थे
यादों का क्या , जो मिलकर जिये थे
बस थक कर यहाँ , चलना नहीं छोड़ते
यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

आँखों में जो कोई बसता था
बातें करते जो संग जगता था
कुछ था , गजब का था
कुछ ऐसा हर पल लगता था
खुलना अच्छा लगता था
उनमें घुलना अच्छा लगता था
हर बंदिश के वाबजूद,  संग उसके
 पागल होना अच्छा लगता था
बस यूँ ही वो पागलपन छोड़ा नहीं करते
यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

कल क्या होगा , बस यही डर है
खुलकर जीने के लिए, कल की परवाह नहीं करते
यूँ ही किसी से रिश्ते नहीं तोड़ते !

Monday 15 January 2018

एक स्वरुप

कुछ क्षण ही तो दूर है
दो पल ही मजबूर है
खोया-पाया कुछ नहीं
वो संघर्ष ही मशहूर है

तुमने तो है चुन लिया
उनसे मोहब्बत कर लिया
राहों की है जो वेदना
नैनों ने उनको पढ़ लिया

नियती की भी एक नियत है
काल चक्र में सब निहित है
चाहे हो यहाँ कोई भी
वक्त से हर कोई आहत है

उसने भी अंतत: चाह लिया
तुझको अभिराम मान लिया
जब है सब कुछ उससे परे
तो तेरी विकटता हर लिया

मिलन है , पुनर्मिलन है
प्रकृति का एक आलिंगन है
दो दिल है उनके जरूर मगर
बसते उनमें एक ही प्राण है


जो था कभी कुछ नहीं
उसे कहानी मान लिया
चाहा जो कुछ यूँ टूटकर
किस्मत भी हार मान लिया

हो अगर एहसास सच्चा तो
उसमें शिव और शक्ति बसते हैं
कृष्ण और राधा रुपी
दोनों दिल में श्वास बसते हैं

तू दो नहीं, तू एक है
अर्धनारीश्वर का स्वरुप है
तूने है जिसको चाह लिया
खुदा भी उसे ही खुदा मान लिया !



Sunday 14 January 2018

एक समर्पण

यूँ तो हैं हम भी , यूँ तो हो तुम भी
हूँ अपूर्ण मैं भी, हो अपूर्ण तुम भी

ये नाम है तुमसे जुड़ा , तुमसे ही पहचान है
किसका कौन जाने वजूद , जब हम अनजान है
तुम हो तो प्राण है, तुम हो तो प्रमाण है
एक दूसरे का ही तो हम यहाँ सम्मान है

मेरे गौरव का अंश हो , मेरा ही विध्वंश हो
जो ना हो साथ तो , दुर्बल मेरा विश्वास है
मैं हूँ धरा यहाँ , तुम पहली बारिश की बूँद हो
व्यथा , व्याकुलता , विरह , बिन तेरे पास है 

पीड़ भी हो, परायी भी
गीत भी हो , खामोशी भी
उलझन भी हो , जिद भी
तुम हो भी , नहीं भी

मैं हूँ तुमसे अटूट सा , तुम हो मेरे स्वरुप सा
जो हो धूप तुम कोई , तो मैं हूँ तेरे साये सा
अर्धनारीश्वर सा रूप में , मैं हूँ तेरे सिंदूर सा
जो है कोई ख्याल तेरा , मैं हूँ उसके भावना सा

हो तुम कुछ यहाँ , कुछ हूँ मैं भी
उम्मीद का दामन तुम , मेरा समर्पण भी
मुझमें तुम भी , तुझमें मैं भी
हूँ अपूर्ण मैं भी, हो अपूर्ण तुम भी !


Saturday 13 January 2018

अपने सपने कैसे छोड़ दूँ

अपने सपने कैसे छोड़ दूँ
बस इत्ती सी मुसीबत में
देखा है ना जाने कब से
रातों में , राहों में, आँखों में
बस तेरे कहने से छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

कभी हमने, कभी इसने ढोया है मुझे
जो टूट गया कभी, हौसला दिया है मुझे
जब सब थे खफा मुझसे , ये साथ था
हर हाल, हर वक़्त, हर सबब में साथ था
भला कैसे मैं अपने इस यार का साथ छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

जिसको मैंने अपना माना, जिससे मेरी पहचान होगी
जिसके सफल होने, ना होने की, पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी
कर्तव्य परायण से मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ
कर्म की पराकाष्ठा पे मैं कैसे रुक सकता हूँ
आज एक हवाला देकर कहते हो छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

जो मेरा मकसद था , जो मेरा जीवन है
जिसके बिना इस नाचीज़ का, ना कोई अस्तित्व है
जिसने इसको सँवरना सीखाया
जिसने इसको उड़ना सीखाया
जिसने इसको बनना सिखाया
जिसने इसको राह दिखाया
बस इसलिए कि वक्त हमारा मुकम्मल नहीं , इसे छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

नजर की बारीकियों में जो बसता है
उसे कैसे मैं, बेघर कर दूँ
आँखों की तफ़्तीश , बिन जिसके सूनी है
उसे कैसे मैं, उसके हक़ से अलग कर दूँ
अब तुम ही बताओ भला
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

Friday 12 January 2018

दर्द की दास्ताँ

समझ आता नहीं , पर दर्द होता है
किसी से पूछ के देखो, दर्द का भी एक शमा होता है !

दर्द !, दर्द से प्यार नहीं किसी को
दर्द से ऐतबार नहीं किसी को
सुकून चाहिए, एक याद चाहिए ,
मगर बिना कुछ खोये , कुछ मिलता नहीं किसी को

वैराग है ये दर्द , अल्फाज है ये दर्द
कोई एकाकी , कोई कहानी है ये दर्द
दर्द के कई रूप हैं , कई रंग हैं
कभी कोई आवाज, कोई याद है दर्द
मुकम्मल होता है सभी को कभी ना कभी
पर सदा के लिए किसी के पास ना ठहरता है ये दर्द

एक कहानी सबकी है यहाँ , खुशी की, दुःख की
आशा-निराशा सबके पाले में है, किसी उम्मीद की
नजर मिलाकर नजर चुराने में माहिर हैं सब
बस यही एक दास्ताँ है यहाँ हर एक दर्द की


हमने भी पूछ ही लिया आखिर एक बार दर्द से
क्या कोई पुराना हिसाब बाकी रह गया है मुझसे
दर्द ने मुस्कुरा कर बोला , "मैं तो साकी तेरा "
तुम मुझसे और मैं तुमसे ही हूँ यहाँ पूरा
अगर मैं ना आऊँ , तो खुद की ताकत पहचानोगे कैसे
जो घर ना करूँ , दिल को कठोर बनाओगे कैसे
सबने जग में पहचान पाया , पर ना मुझे किसी ने अपनाया
 मैं तो साकी तेरा, हमदर्द बन मैंने बस अपना फ़र्ज निभाया

यूँ तो , दर्द का कहना भी सही है
होकर , ना होकर भी वो सही है
जाते-जाते बस उसने इतना ही कहा
" हँसता , मुस्कुराता , मस्तीवाला जीवन ही यहाँ सही है !"

Thursday 11 January 2018

शायद इसलिए तुमसे ही प्यार हो गया !

ना जाने कब, कैसे, तुमसे प्यार हो गया
सबसे अच्छी , प्यारी दोस्त थी तू मेरी
शायद इसलिए तुमसे ही प्यार हो गया !

प्यार हो गया , हाँ तुमसे प्यार हो गया
मगर अब वो दोस्ती कहीं खो गया
बदल गया ना कितना कुछ , दोस्ती से प्यार के सफर में
तुम भी बदल गयी, मैं भी बदल गया


कभी चिढ़ना, कभी चिढ़ाना , अच्छा लगता था ना
वो बेवजह के झगड़े , बड़ा प्यारा लगता था ना
खुद में उलझते थे , मगर दूसरों का सुलझाते थे
तू-तू मैं-मैं को वो जिद अपना, सच्चा लगता था ना 
मगर प्यार में ना जाने कब वो सब कुछ खो गया
 तुम भी बदल गयी, मैं भी बदल गया
शायद इसलिए तुमसे ही प्यार हो गया ! 

प्यार तो हो गया तुमसे, मगर एकतरफा
मैंने तो मान लिया मुकद्दर, मगर एकतरफा
जज्बात भी पले-बढ़े , मगर एकतरफा
और एक कहानी बनी भी , मगर एकतरफा

प्यार को अपनाया तो दोस्ती बुरा मान गयी
जो टूटकर चाहा तुझे , तू और दूर हो गयी
जिसपे था नाज , वही दगा दे गए
शिकायत क्या करूँ, अब तो तू भी अजनबी हो गयी

मगर क्या करूँ अब , ये दिल भी तो मानता नहीं
तेरे सिवा अब कोई भाता भी तो नहीं
माना की बहुत बुरा कर दिया , तुम्हें चाहकर
ये भी सच है की हम अजनबी हो गए तुम्हें चाहकर

अब क्या बताऊँ , इस एकतरफा इश्क में दर्द बहुत है
वक्त के साथ ये जवां भी तो होता बहुत है
तुम्हें भले ही परवाह नहीं मेरी , पर मैं कैसे छोड़ दूँ
साँस का रिश्ता तो धड़कन से जुदा होता नहीं है

तेरी खूबसूरती का शायद ये नजर कायल हो गया
शायद इसलिए तुमसे ही प्यार हो गया !