खत !, मैंने एक खत लिखा उसे
मैंने अपनी भावनायें लिखा उसे
मैंने अपनी सोच लिखा उसे
मैंने अपना अरमां लिखा उसे
मैंने वो पुकार लिखा उसे
मगर , मगर वो तो खत है
खत है , जो एक कागज है
स्याही से लिपटा कागज है
वो जज्बातों का आकार है
आकार शब्द है उनपे
शब्दों का अर्थ है उनपे
एक समझ की अभिलाषा है उनकी
कोई पढ़े , इत्ती सी चाहत है उनकी
मगर , कौन पढ़ेगा उसे ?
खत !, मैंने एक खत लिखा
पहला अक्षर उसका नाम लिखा
मगर मोबाइलों के दौर में खत की कद्र कहाँ
मेरे और मेरे एहसासों की उनको कद्र कहाँ
खत !, मैंने जो एक खत लिखा
मेरे बटुए की रौनक है अब वो !