कैसी आँधी है भारत में ...........
-अभिलाष कुमार पासवान
कैसी हवाएँ दौड़ रही है , मस्त गगन की भारत में
कैसा राष्ट्रवाद छलक रहा है , भारत माँ के आँचल में
लड़ बैठे वो कभी नारे में , कभी बन बैठे खुद वो भाग्य-विधाता
कैसी अंधी चमक फैली ये, कौन बन बैठा है अखंड़ता के हत्या का निर्माता
कभी आरक्षण पर लड़ लेते , कभी धर्म की साख पर लड़ लेते
कैसी निर्मम हत्या है भाईचारे का , इंसानियत ही जब खुद लड़ लेते
कैसी जंग छिड़ी है जग में , कौन है इस पल का निर्माता
कैसा भारत आज खड़ा है , कौन है इस भारत का निर्माता
कौन डरे आज उस आतंकी से , जब हो आतंक घर के अंदर
थोड़ी-थोड़ी लालच में जो रोज खड़ा करे असहिस्णुता का बवंडर
लेने को जो बढ़ गए है , जात धर्म का टीका
कैसे पड़ गए उसके अंदर मातृभूमि का प्यार फीका ?
कैसी शिक्षा पनप रही है , शिक्षा के मन-मंदिर में
कैसी लोकतंत्र खनक रही है , शिक्षार्थी के अंदर में
एक ने गर ली अँगड़ाई तो , दूसरा घात लगाए बैठा है
एक दूजे को लड़वाने की कौन ये गुरु मंत्र दे बैठा है
पूछ रहा हर दिल भारत का , कहाँ गया वो एकता व अखंड़ता का ज्ञान
फैल रही कैसे भारत में दो टका वह क्षीण-दुष्प्रभाव-चेतनाहित का ज्ञान
कैसा फसल उग रहा भारत में , कैसा बदल उमड़ रहा नील गगन में
कैसी अराजकता फ़ैल रही है , भारत माँ के पावन इस मन-मंदिर में