Saturday 31 December 2016

Happy new year!

ये लालिमा भी है बीत गया , नया संवत है देहरी पर
कुछ अरमां है रह गया , कुछ आशाएँ है फिर मुख पर
बस यूँ ही कालांतर बदल रहा , हम मनमौजी  दीवानों का
खुश रहो और खुश रखो सबको  , मुबारक के इस मौके पर
नए वर्ष की शुभ शुभकामनाएँ !☺

Sunday 4 December 2016

करो, कुछ करो -

-पासवान की कलम से 

करो, कुछ करो -
एक जतन करो , एक प्रयत्न के लिए 
मेघ से घिरे आकाश की भी ऊँचाई बहुत है 
यत्न करो , कल्पना से परे जीने के लिए 
कुछ करो , कुछ करने के लिए !

करो, कुछ करो -
एक कदम बढ़ाओ , एक तजुर्बा के लिए 
समय है सीमित , संचित अँधेरा घना बहुत है 
पद चिन्ह छोड़ो , जग के अनुकरण के लिए 
कुछ करो , एक मिशाल बनने के लिए !

करो, कुछ करो -
एक संवाद करो , एक सोच के लिए 
समस्या के टीले पे समाधान खड़ा है 
राह बनो , नदी का किनारा पाने के लिए 
कुछ करो, एक अभिलाषा के लिए !

करो, कुछ करो -
कुछ अपने लिए , कुछ अपनों के लिए !

Tuesday 29 November 2016

जीने तो दे ......

-पासवान की कलम से 

इस आसमां सा है ख्वाब मेरा ,
कुछ ख्वाबों को जीने तो दे  
दो पग ही जमीं सही ,
गिरकर , संभलकर , थोड़ा चलने तो दे  
जिंदगी है एक , पथ है अनेक 
चाह की सीमा नहीं , संभावनाएँ है अनेक 
हर राह की कोई मंजिल है 
हर मंजिल के कोई सपनें है 
हर द्वार से सोपान तक , ऊँच-नीच है अनेक 
डर की विभीषिका से , हर हौसले से जुदा 
हार-जीत से परे , बेबाक सा कुछ पल जीने तो दे 
कुछ लम्हों सी है, साँसों की ये कहानी मेरी 
इस थोड़े में कुछ थोड़ा , कुछ पल जीने तो दे 
मेरी ये जिंदगी है बहुत खूबसूरत 
आज खुलकर इसे मुझे जीने तो दे !

Sunday 20 November 2016

जान सको तो जानो


                               -पासवान की कलम से 

क्या होता है एकाकी में ,
क्या होता है बेबाकी में ,
किस्मत भी है कहीं , और औरों का सलाह 
जान सको तो जानो -
क्या होता है खुद को  खुद में जीने में !

कभी लड़खड़ाए वो कदम ,
कभी डराए वो कदम ,
कभी वही कदम हौसला है , और कभी संघर्ष 
जान सको तो जानो -
क्या होता है अटकलों के बीच जीने में !

एक तरफ उदाहरणों का अंबार है 
एक तरफ हाशिये भी बैठा तैयार है 
है कहीं चुनौती वो  , और है वही कभी जुनून  
जान सको तो जानो -
क्या होता है जिद और जद को जीने में !

जिंदगी कभी बहुत छोटी है , है कभी बहुत बड़ी 
जान सको तो जानो -
कितनी मुश्किल और कितना आसान है इसे जीने में !





Wednesday 28 September 2016

एक सवाल जिंदगी की -

एक सवाल जिंदगी की -

             -पासवान की कलम से 


जिंदगी पूछती है -
कभी अधिकार से तो कभी दुतकार से 
आखिर हक किसने दिया मुझे उसे कुर्बान करने का 
कभी मोहब्बत पे तो कभी किसी फर्ज पे 
और खुद को ना जी पाने का अफसोस संग है 

जिंदगी पूछती है -
बड़ी ही विनम्रता से एक उत्तर की आस में 
आखिर उसका गुनाह क्या था जो उसका वर्तमान छिन गया 
कभी अतीत का साया ना छूटा तो कभी भविष्य की चिंता 
और कश्मकश में ना जाने कितने पल ख्वाब बनकर ही रह गए 

जिंदगी पूछती है -
इक धिक्कार भरी समाज से अपने अस्तित्व के बारे में 
जो जन्म लेते ही जाती-धर्म-नीति के बंधन से बाँध दिया गया
और जीवन का मूल्य छोड़कर सब कुछ पढ़ा दिया गया उसे 
जो उसने चुना नहीं, उसकी ही पीड़ा से आहत है आज   

और हर सवाल पे उसे बस एक मुस्कुराहट मिली -
जो सुकून है दर्द में और एक लौ है घोर अँधेरे में 
और ये जानकर खामोश है कि -
अनुभूति करते उसे उस पल अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता  
और बस यही द्वन्द मन का मन से निरंतर चल रहा 
और हम भी निरंतर चल रहे !

Saturday 18 June 2016

एक लड़की है -

                   -पासवान की कलम से
एक लड़की है -
इस छोटी सी जिंदगी में मेरी 
जो थोड़ी पगली सी है 
जो थोड़ी अपनी सी है 
पर, बहुत प्यारी है !

एक लड़की है -
जो दूर कहीं बैठी है 
जो मुझसे रूठी बैठी है 
उसका रूठना जाता नहीं 
और, मुझे मनाना आता नहीं 
थोड़ी सुलझी है, थोड़ी उलझी है, थोड़ी जिद्दी भी है 
बिल्कुल मेरे जैसी है 
उसके नखरें हैं बच्चों सा, पर बातें बड़ी सयानी है
मुझसे झगडती है बहुत, प्यार करती है बहुत 
पर मुझे अपनाती नहीं !

एक लड़की है -
जो दिल में है, दिमाग में है 
पर मेरी होती नहीं !
 

Sunday 8 May 2016

Happy Mother's Day!!

चोट लगे खुद को तो याद तेरी आती है 
हार जाऊँ खुद से तो याद तेरी आती है 
तेरे गोद से बेहतर सुकून का कोई जहाँ नहीं 
फेरे जो सर पर कोई हाथ तो याद तेरी आती है 
चाहे रहूँ कहीं भी , माँ - याद तेरी आती है 
याद तेरी आती है !

माँ तू तो माँ है 
मेरा अस्तित्व है तू 
ममता का सागर है तू 
जो कभी भूलूँ ना  वो तू फर्ज है
मेरे हर दर्द की , तू ही एक मर्ज है 
माँ तू तो माँ है -
सदा सर्वेश्वर है !

Sunday 24 April 2016

कवि रोता है !!!!!

कवि रोता है -
कभी उलझन की पीड़ा से 
कभी अंतःस्थल के कोहराम से 
कवि रोता है 
कभी मन के एकाकी में 
कभी शब्दों के बंधन में 
आखिर कवि संवेदना महसूस क्यूँ करता है ?

कवि रोता है -
कभी समाज की नासमझी से 
कभी सामर्थ्यवान के अत्याचार से 
कवि रोता है 
कभी सच्चाई को परिभाषा देने में 
कभी कुविचार को आइना दिखाने में 
आखिर कवि समाज के दर्पण में क्यूँ झाँकता है ?

कवि रोता है -
कभी लिखने या ना लिखने की विवशता से
कभी आवाज को उठाने या ना उठाने की कश्मकश से 
कवि रोता है 
फँस अपनी कला की वास्तविकता में 
बंध अपने कल्पना के आधार में 
आखिर कवि यथार्थ से परे क्यूँ जाता है ?

कवि रोता है -
कभी जीविका के जद्दोजहद से 
कभी पारिश्रमिकता के बंदिश से 
कवि रोता है 
शब्दों संग लाचार उदर में 
संघर्षों के वैचारिक सफर में 
आखिर कवि शब्दों के बाजार से मुँह क्यूँ नहीं मोड़ता है ?

कवि रोता है -
आखिर कवि ही क्यूँ रोता है ?
क्यूँ , क्योंकि वो कवि है 
या वो दूरद्रष्टा है 
या शाब्दिक संगोष्ठी उसका धर्म है 
या शब्दों को बेचना मजबूरी है 
या रोना कवि की फितरत है 

कवि रोता है -
ताकि भावना सदा बहती रहे !
शब्द अनुभव सदा सींचती रहे !


Tuesday 8 March 2016


Happy Women's Day!!!!!
जिंदगी के चलते रथ का है एक पहिया तू 
हर एक को दे साँस, है जगत जननी तू 
हर अर्द्धनारीश्वर का  है अभिमान तू
जो ना हो बेवफा वो रिश्ता है तू 
नारी तू नारी है , है सर्वेश्वर तू !!

Thursday 3 March 2016

कभी सोचता हूँ........

कभी सोचता हूँ , क्या सोचता हूँ , पता नहीं 
कुछ उलझन साथ है , कुछ मायूसी साथ है 
साथ कैसा है ये पल का , पता नहीं 
ख़ुशी है किसी बात की या दुःख है , पता नहीं 

कुछ निर्णय कल के मेरे , आज को देखकर 
कुछ पूछती है मुझसे 
क्या सही है , क्या गलत है , खुद की अंतरात्मा 
जानना चाहती है मुझसे 
कभी कहीं किसी शोरगुल में मशगुल था 
कभी किसी एकाकी में मन लिप्त था 
ये मस्ती पसंद दिल भी आज कहीं महरूम है 
क्या है आज ख्वाहिश इसकी , पता नहीं 


कुछ तो बात है जहन में , जो मन बैचैन है
कुछ तालीम कहीं अधूरी है, जो मौन है 
कैसी इबादत है ये खुदा  की , पता नहीं 
कभी सोचता हूँ , क्या सोचता हूँ , पता नहीं
                                           

                                             अभिलाष पासवान


 

Monday 29 February 2016

कैसी आँधी है भारत में ...........

कैसी आँधी है भारत में  ...........

                                             -अभिलाष कुमार पासवान

कैसी हवाएँ दौड़ रही है , मस्त गगन की भारत में 
कैसा राष्ट्रवाद छलक रहा है , भारत माँ के आँचल में

लड़ बैठे वो कभी नारे में , कभी बन बैठे खुद वो भाग्य-विधाता 
कैसी अंधी चमक फैली ये, कौन बन बैठा है अखंड़ता के हत्या का निर्माता 
कभी आरक्षण पर लड़ लेते , कभी धर्म की साख पर लड़ लेते 
कैसी निर्मम हत्या है भाईचारे का , इंसानियत ही जब खुद लड़ लेते 
कैसी जंग छिड़ी है जग में , कौन है इस पल का निर्माता
कैसा भारत आज खड़ा है , कौन है इस भारत का निर्माता

कौन डरे आज उस आतंकी से , जब हो आतंक घर के अंदर 
थोड़ी-थोड़ी लालच में जो रोज खड़ा करे असहिस्णुता का बवंडर 
लेने को जो बढ़ गए है , जात धर्म का टीका
कैसे पड़ गए उसके अंदर मातृभूमि का प्यार फीका ?

कैसी शिक्षा पनप रही है , शिक्षा के मन-मंदिर में 
कैसी लोकतंत्र खनक रही है , शिक्षार्थी के अंदर में 
एक ने गर ली अँगड़ाई तो , दूसरा घात लगाए बैठा है 
एक दूजे को लड़वाने की कौन ये गुरु मंत्र दे बैठा है 
पूछ रहा हर दिल भारत का , कहाँ गया वो एकता व अखंड़ता का ज्ञान
फैल रही कैसे भारत में दो टका वह क्षीण-दुष्प्रभाव-चेतनाहित का ज्ञान 

कैसा फसल उग रहा भारत में , कैसा बदल उमड़ रहा नील गगन में 
कैसी अराजकता फ़ैल रही है , भारत माँ के पावन इस मन-मंदिर में