Sunday 24 April 2016

कवि रोता है !!!!!

कवि रोता है -
कभी उलझन की पीड़ा से 
कभी अंतःस्थल के कोहराम से 
कवि रोता है 
कभी मन के एकाकी में 
कभी शब्दों के बंधन में 
आखिर कवि संवेदना महसूस क्यूँ करता है ?

कवि रोता है -
कभी समाज की नासमझी से 
कभी सामर्थ्यवान के अत्याचार से 
कवि रोता है 
कभी सच्चाई को परिभाषा देने में 
कभी कुविचार को आइना दिखाने में 
आखिर कवि समाज के दर्पण में क्यूँ झाँकता है ?

कवि रोता है -
कभी लिखने या ना लिखने की विवशता से
कभी आवाज को उठाने या ना उठाने की कश्मकश से 
कवि रोता है 
फँस अपनी कला की वास्तविकता में 
बंध अपने कल्पना के आधार में 
आखिर कवि यथार्थ से परे क्यूँ जाता है ?

कवि रोता है -
कभी जीविका के जद्दोजहद से 
कभी पारिश्रमिकता के बंदिश से 
कवि रोता है 
शब्दों संग लाचार उदर में 
संघर्षों के वैचारिक सफर में 
आखिर कवि शब्दों के बाजार से मुँह क्यूँ नहीं मोड़ता है ?

कवि रोता है -
आखिर कवि ही क्यूँ रोता है ?
क्यूँ , क्योंकि वो कवि है 
या वो दूरद्रष्टा है 
या शाब्दिक संगोष्ठी उसका धर्म है 
या शब्दों को बेचना मजबूरी है 
या रोना कवि की फितरत है 

कवि रोता है -
ताकि भावना सदा बहती रहे !
शब्द अनुभव सदा सींचती रहे !