Friday 19 September 2014

बस यूँ ही ....... 


पूछते  लोग खुद  से  सदा  चाहिए क्या मुझे  इस जग से ,नंगे से अस्तिव , और नंगे से ही मोक्ष , है सही यह सात्विक ज्ञान ;
क्या पाया क्या खोया से सिमट रह गयी जिंदिगी ये सारी, पल के वो प्रकाश, "शायद अरमान ", रह गयी अधूरी वो मार्मिक ज्ञान।   

Friday 12 September 2014

वो  लड़की ………… 

                                          -अभिलाष कुमार पासवान 

थी नज़र उपवन की सुमन पे , तभी दिखी मुझे वो लड़की ,
हल्की सी मुस्कराहट  कितनी प्यारी उसकी , भा  गयी मुझे वो लड़की ;
ना कोई उमंग , न कोई जुनून प्यार का, था इस दिल में,
बस अपनी लबोँ  पे ला हंसी , मुझको दीवाना बना गयी वो लड़की ;

उसके चेहरे का नूर बड़ी प्यारी है , उससे भी प्यारी लगती वो लड़की ,
उसके दो आँखोँ  में  दिखती शरारत ,नज़रें चुराकर कायल कर गयी वो लड़की ;
क्या यही है दीवानगी , यही है  आशिक़ी , पुछूं   हर बार दिल से ,
उसकी  मुस्कराहट सितम ढा  गए , मुझे आकर्षित कर गयी वो लड़की ;

अब जो नींद आ जाये गर , सपनोँ में  भी दिखती वो लड़की,
रहे जो अब आँखेँ खुली , नज़र को सामने चाहिए वो लड़की;
ये तो बस मेरे दिल का हाल है , उसके दिल की खबर नहीं यहाँ ,
खुद की हालत कितनी भी बिगड़ जाये , हमेशा सोचता रहता कैसी होगी वो लड़की;

देख के उसके गोरे गालोँ को , मानो स्पर्श करने बुलाती वो लड़की,
वो ओठो की मीठी लाली, मानो चूमने को पास बुलाती वो लड़की;
रूप की उसकी क्या व्याख्या करे कोई , उससे ज्यादा कोई रूपवान नहीं ,
प्रकृति की शीतल छाया उसके चेहरे पे , मानो  छॉंव देने पास बुलाती वो लड़की ;

आँखो में जो ना हो काजल उसके , मानो अधूरी है वो लड़की ,
बहुत ही भोली सूरत है उसकी , बड़ा ही मनभावन है वो लड़की;
कैसे जगा गयी एक एहसास वो इस दिल में , शायद उसे भी पता नहीं ,
भीड़ में  तन्हा हो जाता हूँ , गर फ़िर कभी याद आ जाए वो लड़की;

ढूँढ लूँ दुनिया में चाहे जितनी हसीना , पर खूबसूरत है वही एक वो लड़की ,
है औरोँ  से बिल्कुल जुदा , है बड़ी ही सादगी की कशिश वो लड़की;
बन ना जाए कहीँ मेरी कशिश , चाहता दूर रहे वो हरपल मुझसे ,
दिल भी है मज़बूर बड़ा , चाहूँ  जितना दूर करना , उतनी ही पास आती वो लड़की;

अब तो बस चैन गुम  गए ,अर्धनिद्रा  में  ला  चुप हो गयी वो लड़की,
उसके चंचल मन के सामने ,दिल हार गया , मेरी आशिकी बन गयी वो लड़की;
कल क्या होगा किसने जाना , पर हमेशा ये दिल ढूँढेगा वो लड़की ,
ये दिल ढूँढेगा वो लड़की ....… 

Thursday 11 September 2014

दर्द -हिन्दी  का …… 
                              -अभिलाष कुमार पासवान 

मैं  हिन्दी ,दर्द किसे अपना सुनाऊँ इस जग में ,
पालन -पोषण पा  भारत का , किसे अपने किस्मत का राज़ बताऊँ;
पा सम्मान राजभाषा का ,सुख नहीं दर्द मिला इस अंग्रेजी युग में ,
तीतर-बीतर हो रह  गयी मैं  , किसे आज पखवाड़े मैं सिमटने के राज़ बताऊँ ;

मैं हिन्दी , किसे अपने अंदर छुपे हुए खस्यितो की बात बताऊँ ,
गध -पध सब मेरे पहिये ,ज़िन्दगी के हर पल का मुआयना है इस समागम में ;
जोड़ दिलोँ के बंधन को , इस प्रकृति को, किसे इस कहानी का सच बताऊँ ,
उन्माद भरा इतिहास है मेरा , फिर आज क्योँ खड़ी हूँ लूटने की कतार  में ;

मैं हिन्दी , कैसे अपने पावन हृदय का तुमसे परिचय करवाऊँ ;
बस बता दो आप एक बार, आज कैसे खुद का अस्तित्व बचाऊँ ;
कैसे अपना अस्तित्व  बचाऊँ। 

Thursday 4 September 2014

हूँ  अधूरा बिन इस प्रकृति  का  .......

                                                 -अभिलाष  कुमार  पासवान 
है गोद  बड़ा ही पावन इस प्रकृति का 
ढूँढ  ले इलाज़  तुरंत  यह हमारे हर मनोवृत्ति का 
मस्ती की चाह  में  घूमते , भटकते राह में , सुख़  की पहचान कहाँ 
है  हमारी संपूर्णता  अधूरी बिन इस प्रकृति का 

आँख  खुली जग में  जब , पाया साथ इस प्रकृति का 
जन्मदायी माँ  दर्द  में  भी हँस  पड़ी देख प्यार इस कृति का 
हर स्पर्श में, हर पल जो साथ रहा, है उसका आज पहचान कहाँ 
मातृ दुग्ध रक्त बन सींचता कैसे बिन इस प्रकृति का 

पाया अकेले जब भी खुद को, साथ मिला इस प्रकृति का 
तन्हाई का दर्द बाँटा , एहसास पाया एक नई प्रीति का 
दोस्त-दुश्मन में  उलझ कर रह जाती इस ज़िन्दगी कि पहचान कहाँ 
हर मर्ज़ का दवा आज बने कैसे बिन इस प्रकृति का 

छूट गए जग में  सब , जो ना छूटा साथ इस प्रकृति का 
शांति हो या ध्यान ,न है संभव कभी बिन इसके कीर्ति का 
हर पल ,हर रूप में ,हर भोग -विलास के साक्षी का पहचान कहाँ 
ज़िन्दगी के अवशेष का निर्वाह हो कैसे बिन इस प्रकृति का

सोच कि  उपज़ संभव  कैसे , बिना खेत बने इस प्रकृति का 
जीर्णोद्धार हो मन का जब भी , है यह कहानी एक आपबीती का 
भटकते मंज़िल की तालाश मैं, चकाचोन्ध रौशनी मैं,राह  की बची पहचान कहाँ 
जोगी बिन जोगण अधूरा , हूँ अधूरा मैं बिन इस प्रकृति का 

न हो कोई उन्माद नया, न कभी हो कुछ पूरा, जो न मिले साथ प्रकृति का 
पूछे प्रकृति - अरे ओ सहचर , जग में तेरी पहचान कैसे बिन इस प्रकृति का।