Thursday 11 September 2014

दर्द -हिन्दी  का …… 
                              -अभिलाष कुमार पासवान 

मैं  हिन्दी ,दर्द किसे अपना सुनाऊँ इस जग में ,
पालन -पोषण पा  भारत का , किसे अपने किस्मत का राज़ बताऊँ;
पा सम्मान राजभाषा का ,सुख नहीं दर्द मिला इस अंग्रेजी युग में ,
तीतर-बीतर हो रह  गयी मैं  , किसे आज पखवाड़े मैं सिमटने के राज़ बताऊँ ;

मैं हिन्दी , किसे अपने अंदर छुपे हुए खस्यितो की बात बताऊँ ,
गध -पध सब मेरे पहिये ,ज़िन्दगी के हर पल का मुआयना है इस समागम में ;
जोड़ दिलोँ के बंधन को , इस प्रकृति को, किसे इस कहानी का सच बताऊँ ,
उन्माद भरा इतिहास है मेरा , फिर आज क्योँ खड़ी हूँ लूटने की कतार  में ;

मैं हिन्दी , कैसे अपने पावन हृदय का तुमसे परिचय करवाऊँ ;
बस बता दो आप एक बार, आज कैसे खुद का अस्तित्व बचाऊँ ;
कैसे अपना अस्तित्व  बचाऊँ। 

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