क्यूँ कोई उदास होता है ………
-अभिलाष कुमार पासवान
कभी नाराज़गी, कभी प्यार , हर रिश्ते में ये होता है ,जो ना हो तकरार कभी , फिर वो रिश्ता कहाँ सच्चा होता है ;
होता गुस्सा कोई करीबी जब हमसे , ये दिल पूछता फिर खुद से ,
चार दिन की है ये ज़िंदगानी जब , फिर क्यूँ कोई उदास होता है ………
आज है संग , एक उद्देश्य के संग , फिर कहाँ संग रहना है ,
कुछ पल के बाद तो फिर एक - दूजे के यादों में बस जाना है ;
हम गिले -शिकवे भी करते है , जानते हुए भी कि कल का पता नहीं ,
भूल जाते हैं बस इतना कि हमें इन्हीं पलों से मोहब्बत करना होता हैं ;
चार दिन की है ये ज़िंदगानी जब , फिर क्यूँ कोई उदास होता है ………
छू जाती है दिल को जब कोई बात, मुद्दा वही बन जाता है ,
आप चाहो या ना चाहो , आगे के रिश्ते का वज़ूद बन जाता है ;
समझते कभी एक- दूजे को , एक गुमनाम ज़िन्दगी यहाँ बसर कर जाती ,
बचे पलों को यादगार बनाने में , ये लम्हा छोटा होता चला जाता है ;
चार दिन की है ये ज़िंदगानी जब , फिर क्यूँ कोई उदास होता है ………
बस कुछ मर्यादा होता है अपना , क्यूँ ना वो समझ पाता है ,
ज़िन्दगी के इस पहर में , छोटी सी बातों को भी समझना जरूरी होता है ;
कुछ पल के है संगिनी जब , आन -अना की दीवार क्यों ,
आज की उलझन कल की दूरी , बस तथ्योँ को समझना होता है ;
चार दिन की है ये ज़िंदगानी जब , फिर क्यूँ कोई उदास होता है ………
पुनः मिलन का आसार नहीं , सोच जब यादों को सहेजने बैठता हूँ ,
पूछ बैठता है दिल फिर से की -
चार दिन की है ये ज़िंदगानी जब , फिर क्यूँ कोई उदास होता है ………