नजर पूछती हो जैसे
कोई कमोबेस होकर गया हो
कुछ कहती हो कुछ समझती हो जैसे
कोई अनजाना, अजनबी घर होकर गया हो
सरीखों से सीख ना जाने कितना सीखा
हँसना सीखा , रोना सीखा , ना जाने क्या क्या सीखा
ज़माने का द्वंद और ज़माने की तौहीन
हो ख्वाब जैसे नजरबंद कहीं
आसमां की गिरती बिजली से पूछा हो मानो जैसे
बनना सीखा , गिरना सीखा, और ना जाने क्या क्या सीखा
नजर पूछती हो जैसे
मैंने ना जाने क्या क्या है सीखा !
कोई कमोबेस होकर गया हो
कुछ कहती हो कुछ समझती हो जैसे
कोई अनजाना, अजनबी घर होकर गया हो
सरीखों से सीख ना जाने कितना सीखा
हँसना सीखा , रोना सीखा , ना जाने क्या क्या सीखा
ज़माने का द्वंद और ज़माने की तौहीन
हो ख्वाब जैसे नजरबंद कहीं
आसमां की गिरती बिजली से पूछा हो मानो जैसे
बनना सीखा , गिरना सीखा, और ना जाने क्या क्या सीखा
नजर पूछती हो जैसे
मैंने ना जाने क्या क्या है सीखा !