जो देख लूँ तस्वीर तुम्हारी ………
-अभिलाष कुमार पासवान
जो देख लूँ तस्वीर तुम्हारी कोई रात , रात करवटें बदलते निकल जाता
हूँ कश्मकश में कि कैसे बताऊँ ये बात दिल की किसी को यहाँ पर
जो देख लूँ आभास तुम्हारी कभी , सारा पल बेकरारी में निकल जाता
खुदा भी होगा कितना मगरूर बना के तुम्हें
होगी वो निगाहें कितनी मजबूर ना देख तुम्हें
है कैसी फितरत तुम्हारी की चाँद छुपा बैठी हो
वो तड़प भी होगी कितनी मशहूर , पाकर तुम्हें
जो आ जाए ख्याल मेरी तुम्हें , ये जिंदगी सार्थक हो जाएगा
जो आ जाए ख्याल दिल में , ये इश्क फिर सिद्ध हो जाएगा
कभी ढूँढ़ते थे ख्याल मुझे , अब ये निगाहें तुम्हें ढूँढती है
जो हो जाए दीदार तेरा, अरमानों का इंतजार पूरा हो जाएगा
बस बनाने को एक तस्वीर , समय सोचते निकल जाता
लिखने को एक नगमें , समय तुम्हें याद करते निकल जाता
करे क्या कोई जब असर दिल का दिमाग पर हावी हो
बस एक नाम देने तुम्हें , समय शब्द ढूँढ़ते निकल जाता
जो देख लूँ तस्वीर तुम्हारी , पल तुम्हें याद करते निकल जाता
सोचते तुम्हे , महसूस करते , वो शाम बयां करते निकल जाता