Thursday 25 June 2015

एक याद बनाता हूँ ...........

एक याद बनाता हूँ  ………………

                          -अभिलाष कुमार पासवान 

जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ 
फिर जीता हूँ एक पल में ,फिर उस पल को याद बनाता हूँ 
चलती चली जा रही ज़िन्दगी जब दूर कहीं मुझसे यहाँ 
कभी पास बुलाता , कभी पास जाता , उन लम्हों का शुक्रगुजार होता हूँ 
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ 


भागते-भागते जब थक जाता ,हार तन से जो मन उदास हो जाता 
दुःखी मन में दिल के उद्गार से हिम्मत की दो लफ़्ज़े लाता हूँ 
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ 


जब कभी हारते रो नहीं सकता , पीछे जा एक याद लाता हूँ 
वही जोश , जुनुन कल की ,खुद में ला , खुद में एक विश्वास बोता  हूँ 
एक बार जो छू जाए विश्वास मन को, फिर हार कहाँ और जीत कहाँ 
मन का जीता मैं , बस उस पल को जीत, उम्मीद संग लाता हूँ 
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ 


सुख , दुःख, ईष्या, लालच से परे ,जो चंद पलों के लिए मन कहीं खो जाता 
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में हो संग उसके,संग खुद के होना चाहता हूँ 
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ 


Monday 22 June 2015

तू इतनी खूबसूरत है .............

तू इतनी खूबसूरत है.......... 

                               -अभिलाष कुमार पासवान 


तू इतनी खूबसूरत है , पता था नहीं मुझको 
दीदार करता रहा तेरा , पर देखा ही नहीं तुझको 

थकी ना ये आँखें ,ना भरा कभी ये मन 
खुली आँखें जब भी मेरी , करता रहा इंतज़ार हरदम 
कायनात से चुरा कर जो लाया तुझे , होने हमदम 
दिल्लगी ऐसी थी कि ,बस देख चेहरा पढ़ा तेरा मन 

 कैसा है ये इश्क़ , कैसा है जुनुन ,मैं तो बस साकी तेरा 
पीड़ पराया कर तेरा ,धड़कन में जो बसे वो साँस हूँ तेरा 
परवाना हूँ या अपना ,अब तू ही बता, पूछ दिल से 
आऊँगा नज़र तेरे हर फसाने में जो देखेगी तू दिल से 

लुटाता रहूँ अपनी अरमानों की झरी ,इज़ाज़त दे मुझे 
बस दो पल फ़ना होने तक ,इश्क़ करने की इज़ाज़त दे मुझे 
मैं तो हूँ बस खड़ा यहाँ ,इश्क़ की इबादत है तू 
पूछ एक बार दिल से ,मेरी होकर मुझमे खोने आ जा तू 

बोले जो तू फलक के चाँद को अपना बना लूँ जमीं से 
उस दरिया में उसकी परछाईं उतार  दूँ , बस मुस्करा दे तू 
रूठे जो दुनिया रूठ जाने दे ,पर होना ना नज़र से ओझल तू 
ज़िन्दगी तूझे  सौंप दी है , कर ले जरा अब ऐतबार दिल से 

तू इतनी खूबसूरत है , पता था नहीं मुझको 
तेरी झुकी नज़रों का कायल हूँ ,दीदार करा दे मुझको 


Wednesday 17 June 2015

और कितना याद आओगी तुम !

और कितना याद आओगी तुम !

                      -अभिलाष कुमार पासवान 

दिन ढ़ले ,शाम ढ़ले , रातें भी यूँ ही कट जाती है 
कटता न बस वो पल जिसमे तेरी याद आती है 
कमबख्त देती वो दर्द इतना , कि  असर में खुद को ही भूल जाते 
कैसा असर है ये तेरा मुझपर , कैसे अनभिज्ञ हो तुम? 
और कितना याद आओगी तुम !

याद आतें  है वो पल ,जिसमें संग तू मेरी थी 
तड़पाते  है वो पल जिसमें आज के ख्वाब सजा रखी थी
तड़प भी ये ऐसी है मानो मौत से जुदा हो ख़फ़ा हो बैठी है  
देती ना तकलीफ जिस्म को , शायद ये दिल गवां बैठी है 
भूलातें तो हैं गैरों को यहाँ , पर अपनों को भुला बैठी हो तुम 
और कितना याद आओगी तुम !

क्या चलती रहेगी ज़िन्दगी यूँ ही इंतज़ार में  तेरे 
क्या बहती रहेगी अरमानों की धारा आँसूं बनकर ,जो पूरे  न हो सकता बिन तेरे 
दिया है कुदरत दिल ये कैसा मुझको जो रहा न है अब खुद मेरा होकर 
अमानत बना तुझे सौंप दिया था ,क्या उसे भूल बैठी हो तुम 
और कितना याद आओगी तुम !

समझा लेता हूँ सबको ,पर न समझा पाता नादान  दिल को 
लूटा चुका  हो जो आबरू इश्क़ में तेरे ,खो  बैठा है खुद को 
पूछते देर न लगती , पूछते कभी हिचकिचाता नहीं 
हमेशा बड़ा ही सादगी के साथ है  पूछ  बैठता -
और कितना याद आओगी तुम !

Tuesday 16 June 2015

तुझे और मोहब्बत करूँगा मैं ……

तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं …… 

               -अभिलाष  कुमार पासवान 


 तेरी  बेपरवाहियाँ  , मेरी गुस्ताखियाँ 
ना  भूलूँगा  मैं ;
भागना दूर तेरा  मुझसे , फिर मेरे ही पास आना 
ना भूलूँगा मैं ;
शिकवे भी मुझसे , शिकायत भी मुझसे 
तेरे हर इल्ज़ाम को सहूँगा मैं ;
तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं ……


तेरा चोरी छुपे मुझे देखना , दोस्तों से पूछना 
सामने आने पर तेरी धड़कनों का तेज़ होना ;
अब उसे महसूस करूँगा मैं ;
तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं ……


जाते हुए तेरा पलट कर देखना , तेरा मुस्कुराना 
ना भूलूँगा मैं ;
देख मुझे तेरा पागल होना , बचकानी हरकतों से बाज़ न आना 
ना भूलूँगा मैं ;
प्यार था मुझसे , पर इज़हार का डर था 
तेरी डर से मोहब्बत करूँगा मैं ;
तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं ……


तेरा  हवा से बातें करना , पंछियों के तरह चहकना 
गंभीरता को छोड़ ,तेरा बच्चों की तरह जीना ;
तेरे उस पागलपन को दोहराहूँगा मैं ;
तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं ……


रूठे को मनाने की कला सीखाना  ,तवज़्ज़ों  को पढ़ना सीखाना 
दिल और दिमाग की उलझन से परे जीना , खुद से प्यार करना सीखाना 
तेरी बातों -बातों पर इठलाना , फिर मुस्कुराना ;
ना भूलूँगा कभी , ना भूलूँगा तुझे मैं ;
तुझे  और मोहब्बत  करूँगा मैं ……