एक याद बनाता हूँ ………………
-अभिलाष कुमार पासवान
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ
फिर जीता हूँ एक पल में ,फिर उस पल को याद बनाता हूँ
चलती चली जा रही ज़िन्दगी जब दूर कहीं मुझसे यहाँ
कभी पास बुलाता , कभी पास जाता , उन लम्हों का शुक्रगुजार होता हूँ
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ
भागते-भागते जब थक जाता ,हार तन से जो मन उदास हो जाता
दुःखी मन में दिल के उद्गार से हिम्मत की दो लफ़्ज़े लाता हूँ
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ
जब कभी हारते रो नहीं सकता , पीछे जा एक याद लाता हूँ
वही जोश , जुनुन कल की ,खुद में ला , खुद में एक विश्वास बोता हूँ
एक बार जो छू जाए विश्वास मन को, फिर हार कहाँ और जीत कहाँ
मन का जीता मैं , बस उस पल को जीत, उम्मीद संग लाता हूँ
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ
सुख , दुःख, ईष्या, लालच से परे ,जो चंद पलों के लिए मन कहीं खो जाता
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में हो संग उसके,संग खुद के होना चाहता हूँ
जब जोड़ते छोटे-छोटे लम्हों को एक याद बनाता हूँ