आज हो ज़िन्दगी से जब.…………
गीतकार -अभिलाष कुमार पासवान
स्थायी - : आज हो ज़िन्दगी से जब दूर तुम , उम्मीद क्यूँ है पता नहीं ,
इंतज़ार भी न कर सकता , भूला भी न सकता , क्या करूँ बता दो तुम ;
अब तो शायद ज़िन्दगी बन गयी हो तुम !
अंतरा -1 : अहले सुबह जब हूँ मैं सोया , अपनी भींगी ज़ुल्फो से भींगा देना मुझे ;
नहला देना अपनी मोहब्बत की बारिश से , जो बादल की बूँदे ना भींगा पाया मुझे ;
रूप तो है एक ही तेरा , पर ना जाने तेरे कितने रूपोँ का कायल हूँ मैं ;
जब गोपियां संग मैं रास रचाऊँ , राधा बन तुम बुला लेना मुझे ;
आज हो ज़िन्दगी से जब.…………
अंतरा -2 : धूप मे छाओं बन , बारिश मैं छत बन , और ज़िन्दगी की साया बन रहना संग मेरे ;
रूठूँ जो मैं तुझसे कभी , वज़ह को इश्क़ से स्पर्श करा छू लेना मन को मेरे ;
रहूँगा तो संग ज़िन्दगी भर मैं तेरे , पर पल को हसीं बना लेना तू संग मेरे ;
तेरी हर खूबसूरती पर हक़ मेरा हो , अपनी आँखोँ में बसा हो जाना तू मेरे ;
आज हो ज़िन्दगी से जब.…………
अंतरा -3 : दूर हूँ आज जब तुमसे मैं , मीठी यादें सताती है कैसे पता नहीं ;
बता भी तो ना सकता किसी को , तुम्हारा पता क्या है आज पता नहीं ;
हो ना क्यूँ कि हम जुड़ जाए मन के तार से, एक दूजे से इस जग में ;
कल का तो पता नहीं , पर आज इंतज़ार क्यूँ करता हूँ पता नहीं ;
आज हो ज़िन्दगी से जब.…………