कुछ तो चाहता है दिल आज मगर………………………
-अभिलाष कुमार पासवान
कुछ तो चाहता है दिल आज मगर , जाने क्यूँ कहने से कतराता है ,
दो पल कि ज़िंदगानी में ये , खुशियोँ की एक प्रीत खिलाना चाहता है ;
हुआ ना कोई सवेरा ऐसा , जिसने अरमानो का कोई सेज सजाया ना हो ,
बहकी -बहकी हवाओँ के बीच , थाम तूफ़ान का दर्द हौसला आगे बढ़ाया ना हो ;
बस कुछ चीज़ें हैं स्थिर जग में , पर देखने का नजरिया में एक अलगाव है ,
क्या पाया क्या खोया को छोड़कर , सब कुछ खोकर पाने का हुनर सिखाया ना हो ;
माँग लूँगा खुदा से दो पल मरने से पहले , गर इंतज़ार ख़त्म होने को होगी ,
जिसके इंतज़ार में जिया ज़िन्दगी भर , उसके ना आने की भी कोई वज़ह होगी ;
सोचता हूँ ऐसा , इस पागल दिल को तसल्ली देने के लिए , पर पता नहीं ,
चाहता हूँ बस इसी जनम में मिलना , क्या पता अगली जनम में मुलाक़ात न होगी ;
हुआ ना कोई सवेरा ऐसा , जिसने ज़िम्मेदारी का एहसास कराया ना हो ,
एक वयक्तित्व की दरिया में , मर्यादा और गरिमा का ख्याल कराया न हो ;
है दुनिया में सब कुछ जायज़ , जब तक वो एक सीमा के अंदर है ,
जायज़ , नाजायज़ की बात को छोड़कर , खुद की सीमा तय करना सिखाया न हो ;
माँग लूँगा खुदा से दो पल इज़हार के लिए , गर मेरी इश्क़ उसे कबूल होगी ,
जिस इश्क़ ने दिया मुझे हौसला अब तक , उसके अस्तित्व की एक वज़ह होगी ;
सुना हूँ इश्क़ का रास्ता , जुनून की गलियोँ से गुज़रा करता है इस जग में ,
इस दिल का जुनून है सिर्फ चाहना उसको , क्या पता कल शायद चाहत न होगी ;
कुछ तो चाहता है दिल आज मगर , जाने किस उलझन से डरता है ,
मिली है ये ज़िन्दगी एक ही उसको , खुले आसमां में खुलकर जीना चाहता है ;
कुछ तो चाहता है दिल आज मगर .....................................
No comments:
Post a Comment