इक इश्क़ के इंतज़ार में …………
-अभिलाष कुमार पासवान
इक इश्क़ के इंतज़ार में , कटे कुछ लम्हें यूँ ही ;
हर वो लम्हा तन्हा था , रह जाता हर लम्हा बिन तेरे अधूरी ;
इश्क़ रचाऊँ ओ रब्बा किससे , वो तो गलियोँ में गुम गई ;
कुँए से समंदर मैं जाने की थी चाहत , रास्ते वीरान रह गई ;
दिया ओ मौला तूने कैसा ये दर्द , दर्द कसक बन चुभ गई ;
तेरे वो खूबसूरत पुष्प को पाने में , मेरी आशिक़ी अधूरी रह गई ;
शिकवा ना करूँगा उससे कभी , शिकायत ना रहेगी तुझसे कभी ;
बस डाल दे झोली में मेरे वो इश्क़ , वो इस ज़िन्दगी का हिस्सा था कभी ;
ढूँढा दुनिया में बहुत कुछ , पर हमसफ़र को पहचान ना पाया कभी ;
खोया है बहुत कुछ दूर जाकर मैंने , उसे अब भूला ना पाउँगा कभी ;
ज़िंदगी अधूरी लगे बिन इश्क़ के , इश्क़ अधूरी है बिन उसके ;
ख्वाब तो बस एक ही देखा था , ना हो सकता पूरे बिन उसके ;
एक ही इश्क़ है , एक ही जुस्तजू , एक ही जूनून है बस उसके ;
हम तो बस राही हैं , हर मंजिल पास होकर भी दूर है बिन उसके ;
पहुँचा दे पैग़ाम ऐ खुदा मेरे उस तक, इश्क़ का राही हूँ ;
हकीकत है वो मेरी , और खड़ा बीच मंझधार में मैं हूँ ;
नदियाँ की धार ही जोड़ती दो किनारे , एक पे खड़ा मैं हूँ ;
एक ही राही , एक ही पथ , एक ही मंज़िल , इंतज़ार में खड़ा मैं हूँ ……
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