Sunday 15 January 2017

कौन ?

वक्त भी खामोश है, कलम भी खामोश है
फिर कहेगा कौन और लिखेगा कौन ?

एक आँधी सी है हुकूमत की
वहीँ जद्दोजहद है किसी कौम की
एक ने कद्र नहीं किया , दूजे ने सुलह नहीं किया
इस अंतर्द्वंद की विवेचना करेगा कौन ?

समाज चुप है , सामाजिक बुराईयों को देख कर भी
इंसान चुप है , इंसानियत को मरते देखकर भी
सबको अपनी फ़िक्र है , औरों की चिंता करेगा कौन ?

ये कैसा विडम्बना है सोच की
कि खुद से ही दूर हो गए है हम
जरा रुको , जरा देखो , जरा सोचो
खुद को खुद से जोड़ेगा कौन ?

Thursday 5 January 2017

वक्त ! बस वक्त है

- पासवान की कलम से 

वक्त चलता है -
सफर से पहले , सफर के बाद तक 
ज्ञान से पहले , ज्ञान के बाद तक 
मगर , खामोशी संग !

वक्त अजेय है -
कालांतर के युद्ध में
स्वयुद्ध में 
मगर , गुमान नहीं !

वक्त लंबी है -
इंतजार तक और समर्पण तक 
निभाने तक और समझने तक 
मगर , सीमित है !

वक्त विरोधाभास है -
विचारों की शैली में 
एहसासों के स्पंदन में 
मगर , भाव-विहीन !

वक्त कर्मठ है -
संघर्ष से वजयी तक 
चेतना से उमंग तक 
मगर , श्रेय लेता नहीं !

वक्त ! बस वक्त है 
किसी का मोहताज नहीं !