उनकी यादोँ का सैलाब .................
-अभिलाष कुमार पासवान
ये भूली -बिसरी यादें , यहाँ भीड़ में मुझे तन्हाई दे जाता है ,कमबख्त पल वो , जो कल अपने थे , मुझसे दगा कर जाता है ;
वो विश्वास की एक डोर , कल की , आज दर्द देने को बड़ा आतुर है ,
मेरे चहकते मन को भी वो एहसास , हर पल स्थिर कर जाता है ;
उनकी यादोँ का सैलाब आज फिर -फिर रुला जाता है .................
क्या फ़ितरत थी उनकी , क्या फ़ितरत मेरी है , सोच ये बेजुबां सा हूँ ,
किसे सुनाऊँ अपनी यारी कुर्बान कर उसपे , आज खुद कश्मकश में हूँ ;
किसे बताऊँ ये हाल दिल का , पल का ये ताना अब बर्दाश्त न होता है ,
उन्हें तो अपना समझा था , पर कहते हैं यहाँ तो अपना ही पराया होता है ;
और , उनकी यादोँ का सैलाब आज फिर -फिर रुला जाता है .................
गुजरते रातोँ में , नई सुबह की उम्मीद के संग, रात तो कट जाता है ,
अहले सुबह दस्तक पड़ते ही उन यादोँ का , मन फिर उदास सा हो जाता है ;
ये रिश्ते दिल से उभरे थे, और आज दिल को ही नासूर करने को आतुर है ,
पता नहीं था मुझको यहाँ , कि दिल का रिश्ता भी दगा कर जाता है ;
और , उनकी यादोँ का सैलाब आज फिर -फिर रुला जाता है .................
यूँ तो उनकी ख़ुशी के लिए , ज़िंदगी अपनी उनके पास छोड़ आया हूँ ,
प्रेरणा थी वो मेरी , अपनी मोहब्बत को खुदा के भरोसे छोड़ आया हूँ ;
दर्द जितने भी हो दिल में , जीने के लिए यहाँ मुस्कराना तो पड़ता है ,
बस एक वजह को ज़िंदा रखने को , उम्मीद -ए -वफ़ा लगाना तो पड़ता है ;
पर , उनकी यादोँ का सैलाब आज फिर -फिर रुला जाता है .................
सुना है किसी की मोहब्बत को पाने में , एक ज़िंदगी छोटा पड़ जाता है ,
गर मोहब्बत नाम -ए -इंतज़ार हो तो , ज़िंदगी फिर कट ही जाता है ;
ज़िंदगी के जिस पहलू को जोड़ता आया मैं , वही आज खुद टूटने को आतुर है ;
ये ज़िंदगी , ये एहसास , एक बार ही मिली है , सोच दिल को पुनः उन्माद मिल जाता है ;
पर ,उनकी यादोँ का सैलाब आज फिर -फिर रुला जाता है .................