वक्त पे कभी रूककर ...................
-अभिलाष कुमार पासवान
होती कहाँ अब वक्त वो , जहाँ खुद की कोई सुनें ;
वक्त पे कभी रूककर , दिल की बात तो सुन लो !!!
रही भागती ज़िंदगी , रहे भागते हम , बन न पाया कभी साथी खुद का ;
शुकुन मिला , वीरानियाँ मिली , मिला न यहाँ तो सिर्फ मेरा मन खुद का ;
किया एतबार वक्त से , संग चल उसके , हो उसके ;
आयी तन्हाईयाँ जब भी , एक आवाज सुना --
वक्त पे कभी रूककर , दिल की बात तो सुन लो !!!
रहा बैचेन सदा , सुनने को उनकी बातें , पर खुद से बातें कर न पाया ;
जो रहा सदा मुझमे , सदा से होकर , भागते उसे ही यहाँ पहचान न पाया ;
एक ही वो , एक ही है हम , एक ही है पहचान हमारी ;
मगर रहा सदा अनभिज्ञ , पर हमेशा एक आवाज़ सुना --
वक्त पे कभी रूककर , दिल की बात तो सुन लो !!!
मिला ज्ञान जग का मुझको भी , मिला ज्ञान भक्ति मार्ग का , प्रेम मार्ग का ;
मिला न सिर्फ तो कोई ज्ञाता , जो दे सकता हो ज्ञान खुद को पाने का ;
सब कुछ पा लेने पर भी , जो पा न पाया खुद को ;
है अधूरा सदा जग में वो , फिर एक आवाज सुना --
वक्त पे कभी रूककर , दिल की बात तो सुन लो !!!