Friday 22 December 2017

मैं बदल रहा हूँ

सब ने चाहा मुझको , सब ने तराशा मुझको
सबका अपना अपना मतलब, सबकी अपनी आशा
जो ना ढलने लगा उनकी उम्मीदों पर , कहने लगे
"मैं बदल रहा हूँ "

सच्चा दिल था मेरा , उनके लिए
एक इज्जत थी बड़ी , उनके लिए
कभी माना , कभी जाना उसे
बस एक कठपुतली था मैं उनके लिए

एक रिश्ता था मेरा जज्बातों का
माना कि कच्चा था , पर पक्का था
प्यार था जैसे आँखों में अपनों सा
चाहा था बहुत , लगन सच्चा था

पर कठपुतली का भला महत्व कहाँ होता है
मतलब के आँगन में रिश्ता कहाँ ठहरता है
जो झुका रिश्ता निभाने, मजबूरी समझ बैठे
हम झुकते रहे , और वो मुझे खोते रहे

जो कह दी आज पलट कर कुछ , कहने लगे
"मैं बदल रहा हूँ "

मैं ऐसा नहीं हूँ , जिसमें कोई ऐब नहीं
मैं इतना सच्चा भी नहीं , कि मुझमें कोई झूठ नहीं
मगर, ठेस पहुँचाना किसी दिल को मुझे स्वीकार नहीं
किसी के आँखों में यूँ आँसू देना मुझे मंजूर नहीं

हाँ , मैं बदल रहा हूँ ,  बदल रहा हूँ , अपने लिए
मैं बदल रहा हूँ , अपने वजूद के लिए
हक़ है मुझे भी तुमसा बनने का
हक़ है मुझे भी तुमसे बेहतर बनने का

ये जिंदगी मेरी है,
इसकी राह मेरी है , मिले हार-जीत मेरी है
ठोकर तुम चाहो तो दो , पर हर सबब मेरी है
अगर सीख कर अमल करना , बदलना है तो
हाँ, "मैं बदल रहा हूँ "
"मैं बदल रहा हूँ " !

Saturday 4 November 2017

ये जिंदगी .....

कुछ ख्वाब है , कुछ हकीकत है
ये कुछ पल हैं , दोनों के ही है
एक दास्तां है , फिर ये जिंदगी
और, सवाल और जवाब , सफर है

एक अस्तित्व है , जो अस्तित्व में जा मिली
जो सफर थी कभी, मंजिल से जा मिली
हँसते-हँसाते ना जाने कितने नज्म छुए
रोते-मनाते ना जाने कितने लफ्ज़ छुए
कुछ सुने किस्से बने , कुछ रहस्य हो गए
कुछ तजुर्बा , वक्त के साथ ज्ञान बन गए
सांसें थी जब तक, कुछ समझें, कुछ ने समझाया  
कुछ के ठुकराया , कुछ ने साथ निभाया
कभी पीड़ा थी कुछ की , कभी कुछ सहज था
कभी समय से जंग रहा , कभी समय संग था
और क्या कहूँ , इतनी ही तो है जिंदगी -
कुछ ख्वाब है , कुछ हकीकत है
ये कुछ पल हैं , दोनों के ही है
एक दास्तां है , फिर ये जिंदगी !!

Sunday 27 August 2017

द्वंद नजर की

नजर पूछती हो जैसे
कोई कमोबेस होकर गया हो
कुछ कहती हो कुछ समझती हो जैसे
कोई अनजाना, अजनबी घर होकर गया हो

सरीखों से सीख ना जाने कितना सीखा
हँसना सीखा , रोना सीखा , ना जाने क्या क्या सीखा
ज़माने का द्वंद और ज़माने की तौहीन
हो ख्वाब जैसे नजरबंद कहीं
आसमां की गिरती बिजली से पूछा हो मानो जैसे
बनना सीखा , गिरना सीखा,  और ना जाने क्या क्या सीखा 

नजर पूछती हो जैसे
मैंने ना जाने क्या क्या है सीखा !

Sunday 14 May 2017

#Happy Mother's Day !!!


तुझसे खूबसूरत ना जग में कोई दूजा
तेरे आँचल से ना ज्यादा कोई आसमां
सर रख गोद में जिसके हर दुःख भूल जाता हूँ
जिसके बिन इस जग में ना कोई अस्तित्व मेरा
माँ तू मेरी माँ है, तू ही है जग में सब कुछ मेरा !

#Happy Mother's Day !!!

Wednesday 22 March 2017

सफर

बस चलते-चलते यूँ ही पीछे मुड़कर देखा तो
सफर की सड़क तो लंबी थी,
कभी समतल थी , कभी खुदगर्ज थी ,
भीड़ का कद भी ऊँचा था और तन्हाई भी बड़ी थी ,
मगर फिर भी हम अकेले थे ,
मेरा अस्तित्व अकेला था ,
मेरी परछाईं अकेली थी,
मेरे जज्बात अकेले थे ,
मेरा अकेलापन भी अकेला था ,
सब कुछ सहज भी था और सत्य भी
ढूँढा जब अपनों को, सब पराये निकले
मानो जिंदगी ने अपनी सार्थकता बताई हो
और सफर का प्रकृति अपना सामर्थ्य ,
बस खुद को खोते-खोते मानो खुद को पा लिया था
और ये प्रकृति एक सच सी साथ थी  !

Sunday 15 January 2017

कौन ?

वक्त भी खामोश है, कलम भी खामोश है
फिर कहेगा कौन और लिखेगा कौन ?

एक आँधी सी है हुकूमत की
वहीँ जद्दोजहद है किसी कौम की
एक ने कद्र नहीं किया , दूजे ने सुलह नहीं किया
इस अंतर्द्वंद की विवेचना करेगा कौन ?

समाज चुप है , सामाजिक बुराईयों को देख कर भी
इंसान चुप है , इंसानियत को मरते देखकर भी
सबको अपनी फ़िक्र है , औरों की चिंता करेगा कौन ?

ये कैसा विडम्बना है सोच की
कि खुद से ही दूर हो गए है हम
जरा रुको , जरा देखो , जरा सोचो
खुद को खुद से जोड़ेगा कौन ?

Thursday 5 January 2017

वक्त ! बस वक्त है

- पासवान की कलम से 

वक्त चलता है -
सफर से पहले , सफर के बाद तक 
ज्ञान से पहले , ज्ञान के बाद तक 
मगर , खामोशी संग !

वक्त अजेय है -
कालांतर के युद्ध में
स्वयुद्ध में 
मगर , गुमान नहीं !

वक्त लंबी है -
इंतजार तक और समर्पण तक 
निभाने तक और समझने तक 
मगर , सीमित है !

वक्त विरोधाभास है -
विचारों की शैली में 
एहसासों के स्पंदन में 
मगर , भाव-विहीन !

वक्त कर्मठ है -
संघर्ष से वजयी तक 
चेतना से उमंग तक 
मगर , श्रेय लेता नहीं !

वक्त ! बस वक्त है 
किसी का मोहताज नहीं !