Sunday 15 January 2017

कौन ?

वक्त भी खामोश है, कलम भी खामोश है
फिर कहेगा कौन और लिखेगा कौन ?

एक आँधी सी है हुकूमत की
वहीँ जद्दोजहद है किसी कौम की
एक ने कद्र नहीं किया , दूजे ने सुलह नहीं किया
इस अंतर्द्वंद की विवेचना करेगा कौन ?

समाज चुप है , सामाजिक बुराईयों को देख कर भी
इंसान चुप है , इंसानियत को मरते देखकर भी
सबको अपनी फ़िक्र है , औरों की चिंता करेगा कौन ?

ये कैसा विडम्बना है सोच की
कि खुद से ही दूर हो गए है हम
जरा रुको , जरा देखो , जरा सोचो
खुद को खुद से जोड़ेगा कौन ?

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