Wednesday 17 June 2015

और कितना याद आओगी तुम !

और कितना याद आओगी तुम !

                      -अभिलाष कुमार पासवान 

दिन ढ़ले ,शाम ढ़ले , रातें भी यूँ ही कट जाती है 
कटता न बस वो पल जिसमे तेरी याद आती है 
कमबख्त देती वो दर्द इतना , कि  असर में खुद को ही भूल जाते 
कैसा असर है ये तेरा मुझपर , कैसे अनभिज्ञ हो तुम? 
और कितना याद आओगी तुम !

याद आतें  है वो पल ,जिसमें संग तू मेरी थी 
तड़पाते  है वो पल जिसमें आज के ख्वाब सजा रखी थी
तड़प भी ये ऐसी है मानो मौत से जुदा हो ख़फ़ा हो बैठी है  
देती ना तकलीफ जिस्म को , शायद ये दिल गवां बैठी है 
भूलातें तो हैं गैरों को यहाँ , पर अपनों को भुला बैठी हो तुम 
और कितना याद आओगी तुम !

क्या चलती रहेगी ज़िन्दगी यूँ ही इंतज़ार में  तेरे 
क्या बहती रहेगी अरमानों की धारा आँसूं बनकर ,जो पूरे  न हो सकता बिन तेरे 
दिया है कुदरत दिल ये कैसा मुझको जो रहा न है अब खुद मेरा होकर 
अमानत बना तुझे सौंप दिया था ,क्या उसे भूल बैठी हो तुम 
और कितना याद आओगी तुम !

समझा लेता हूँ सबको ,पर न समझा पाता नादान  दिल को 
लूटा चुका  हो जो आबरू इश्क़ में तेरे ,खो  बैठा है खुद को 
पूछते देर न लगती , पूछते कभी हिचकिचाता नहीं 
हमेशा बड़ा ही सादगी के साथ है  पूछ  बैठता -
और कितना याद आओगी तुम !

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