Saturday 31 January 2015

क्यूँ  कोई उदास  होता है ……… 

-अभिलाष कुमार पासवान

कभी  नाराज़गी,  कभी  प्यार , हर रिश्ते  में  ये  होता  है ,
जो  ना  हो  तकरार कभी , फिर वो रिश्ता कहाँ  सच्चा  होता है ;
होता  गुस्सा  कोई  करीबी  जब हमसे , ये दिल  पूछता  फिर खुद से ,
चार दिन  की है  ये ज़िंदगानी  जब , फिर क्यूँ  कोई उदास  होता है ……… 

आज है संग , एक  उद्देश्य  के संग , फिर  कहाँ  संग  रहना  है ,
कुछ  पल  के बाद तो  फिर एक - दूजे  के यादों में  बस जाना है ;
हम  गिले -शिकवे  भी  करते  है , जानते  हुए  भी  कि  कल का पता नहीं ,
भूल जाते  हैं  बस इतना  कि  हमें  इन्हीं  पलों  से  मोहब्बत करना होता हैं ;
चार दिन  की है  ये ज़िंदगानी  जब , फिर क्यूँ  कोई उदास  होता है ……… 

छू  जाती  है  दिल  को  जब  कोई  बात, मुद्दा  वही  बन जाता  है ,
आप  चाहो या  ना  चाहो , आगे  के  रिश्ते  का  वज़ूद  बन जाता है ;
समझते  कभी  एक- दूजे को , एक गुमनाम  ज़िन्दगी  यहाँ बसर कर जाती ,
बचे  पलों  को  यादगार  बनाने में , ये लम्हा  छोटा  होता  चला जाता  है ;
चार दिन  की है  ये ज़िंदगानी  जब , फिर क्यूँ  कोई उदास  होता है ……… 

बस  कुछ  मर्यादा  होता है अपना , क्यूँ  ना  वो  समझ पाता  है ,
ज़िन्दगी  के  इस  पहर  में , छोटी सी बातों  को भी  समझना जरूरी  होता है ;
कुछ  पल  के  है  संगिनी  जब , आन -अना  की  दीवार  क्यों ,
आज  की  उलझन  कल  की  दूरी , बस  तथ्योँ  को समझना  होता   है ;
चार दिन  की है  ये ज़िंदगानी  जब , फिर क्यूँ  कोई उदास  होता है ……… 

पुनः  मिलन  का  आसार  नहीं , सोच  जब  यादों  को  सहेजने  बैठता  हूँ ,
पूछ  बैठता  है  दिल  फिर  से  की -
चार दिन  की है  ये ज़िंदगानी  जब , फिर क्यूँ  कोई उदास  होता है ………  
 

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