वो एक शब्द ………
-अभिलाष कुमार पासवान
लिखते हैं जब शब्द कभी , कभी शब्द मुझे बयां कर जाता है ,दिल में छुपी हसरतो को , कोरे कागज़ पर फिर गढ़ जाता है ;
ये दुनिया वीरां पर थी जब , तब से 'वो एक शब्द ' ख्याल में आया ,
प्यासी धरती और बादल की बूँद को 'वो एक शब्द ' फिर बयां कर आया ;
दुनिया की है कोई तस्वीर नहीं अपनी , बस हर नज़र बयां करती अपने लिए ,
जितनी नज़रे भी बयां करने की तकलीफ की , 'वो एक शब्द ' उस नज़र को बयां कर आया ;
लिखते हैं जब शब्द कभी.................
ये सागर धरा पर , पानी रखे हुए भी प्यासी थी , बस सुनने को 'वो एक शब्द ',
मरुस्थल में पेड़ो को जीवन मिल जाए , जो उनके कानोँ में कह दे कोई 'वो एक शब्द ';
बन गयी है ये दुनिया आज इतनी रंगीली कि सादगी इसकी है कहीँ गुम गयी ,
सरलता और सादगी भरा , जीवन के पथ पर अग्रसर हो जाए जो समझ जाए 'वो एक शब्द ';
लिखते हैं जब शब्द कभी.................
जब धरती के ही आँसू से समुंद्र भर रहा था , तब से 'वो एक शब्द ' ख्याल में आया ,
आँसू थे जब दिल के अपने , तब बयां करने 'वो एक शब्द ' जुबां पे आया ;
होती है पहचान अदभुत कितनी कि जिस्म का दर्द दिखता , दिखता न दिलोँ का ,
दिल के हर दर्द , हर तन्हाई को समझाने को 'वो एक शब्द ' रूप बदल-बदल कर आया ;
लिखते हैं जब शब्द कभी.................
तूफां भी टकराता रहा तट से , बस सुनने को 'वो एक शब्द ' ,
गरिमा , अस्तित्व लौट आते प्रकृती के कण में आत्मसात कर 'वो एक शब्द ';
लालची मायाजाल के भयंकर भँवर में , डगमगाता है ईमानदार के भी ईमान ,
वो हृदय बन जाती है कठोर जग में फिर जो आत्मसात कर ले 'वो एक शब्द ';
लिखते हैं जब शब्द कभी.................. … ....
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