Monday 28 May 2018

चाहत बहुत है !

क्यों करते हो बेवफाई ,
दिल रोता बहुत है
चाहा है टूटकर इस कदर कि
उनमें वफ़ा बहुत है !

जमाने में छोड़कर खुद को
तुम्हें अपनाया बहुत है
जो ठुकराया है लोगो ने
दिल को समझाया बहुत है
रह कर बेपरवाह खुद मगर
परवाह किया बहुत है
क्यूँ ठुकराते हो किसी दिल को
इसमें चाहत बहुत है !

जिसकी नजरों ने सींचा है तुम्हें
शब्द जिनके आसक्त करता है तुम्हें
जिनके ख्यालों में तेरी अदायें ढलती है
जिनके मन चित्र में केवल तू पलती है
चाहा है जिसने सिर्फ और सिर्फ तुम्हें
माना है जिसने अपना आदिशक्ति तुम्हें
जिनके लिए लफ्ज तेरा आदेश है 
जिनके लिए यौवन तेरा चरितार्थ है
क्यूँ दूर रहना चाहते हो ऐसे दिल से
इस दिल में इल्तजा बहुत है !

मिलता है जग में सबकुछ यहाँ मगर
सच्चे प्यार की कमी बहुत है
सब चाहते हैं खुश रहना यहाँ मगर
खुशियों की कमी बहुत है
दो दिल जुड़ जाये तो हर्ज कैसा फिर
तन्हा दिल की तादाद बहुत है
जो ये एक दिल है , मानो तेरा ही है
तेरे लिए इसमें इज्जत बहुत है

ख्वाब भी अपना माना है तुम्हें
नींद ने भी सहचर चुना है तुम्हें
ये जिस्म भी तेरे रूह का आदि है
सुकून भी तेरे चौखठ का आदि है
इश्क ने अपना अस्त माना है तुम्हें
खोकर सबकुछ जैसे पाया है तुम्हें
साँसें भी अब तुझमें बसने लगी है
जी भी तुमसे ही लगने लगी है
जो ये दिल है, है ये बेताब बड़ा
इसमें तू जँचती बहुत है !

इस जग में राग-द्वेष बहुत है
इश्क में यहाँ संघर्ष बहुत है
क्यूँ  हो दूर ऐसे दिल से
जिसने दिया तेरे लिए इंतहा बहुत है ! 

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