Sunday 14 January 2018

एक समर्पण

यूँ तो हैं हम भी , यूँ तो हो तुम भी
हूँ अपूर्ण मैं भी, हो अपूर्ण तुम भी

ये नाम है तुमसे जुड़ा , तुमसे ही पहचान है
किसका कौन जाने वजूद , जब हम अनजान है
तुम हो तो प्राण है, तुम हो तो प्रमाण है
एक दूसरे का ही तो हम यहाँ सम्मान है

मेरे गौरव का अंश हो , मेरा ही विध्वंश हो
जो ना हो साथ तो , दुर्बल मेरा विश्वास है
मैं हूँ धरा यहाँ , तुम पहली बारिश की बूँद हो
व्यथा , व्याकुलता , विरह , बिन तेरे पास है 

पीड़ भी हो, परायी भी
गीत भी हो , खामोशी भी
उलझन भी हो , जिद भी
तुम हो भी , नहीं भी

मैं हूँ तुमसे अटूट सा , तुम हो मेरे स्वरुप सा
जो हो धूप तुम कोई , तो मैं हूँ तेरे साये सा
अर्धनारीश्वर सा रूप में , मैं हूँ तेरे सिंदूर सा
जो है कोई ख्याल तेरा , मैं हूँ उसके भावना सा

हो तुम कुछ यहाँ , कुछ हूँ मैं भी
उम्मीद का दामन तुम , मेरा समर्पण भी
मुझमें तुम भी , तुझमें मैं भी
हूँ अपूर्ण मैं भी, हो अपूर्ण तुम भी !


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