Monday 15 January 2018

एक स्वरुप

कुछ क्षण ही तो दूर है
दो पल ही मजबूर है
खोया-पाया कुछ नहीं
वो संघर्ष ही मशहूर है

तुमने तो है चुन लिया
उनसे मोहब्बत कर लिया
राहों की है जो वेदना
नैनों ने उनको पढ़ लिया

नियती की भी एक नियत है
काल चक्र में सब निहित है
चाहे हो यहाँ कोई भी
वक्त से हर कोई आहत है

उसने भी अंतत: चाह लिया
तुझको अभिराम मान लिया
जब है सब कुछ उससे परे
तो तेरी विकटता हर लिया

मिलन है , पुनर्मिलन है
प्रकृति का एक आलिंगन है
दो दिल है उनके जरूर मगर
बसते उनमें एक ही प्राण है


जो था कभी कुछ नहीं
उसे कहानी मान लिया
चाहा जो कुछ यूँ टूटकर
किस्मत भी हार मान लिया

हो अगर एहसास सच्चा तो
उसमें शिव और शक्ति बसते हैं
कृष्ण और राधा रुपी
दोनों दिल में श्वास बसते हैं

तू दो नहीं, तू एक है
अर्धनारीश्वर का स्वरुप है
तूने है जिसको चाह लिया
खुदा भी उसे ही खुदा मान लिया !



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