Friday 12 January 2018

दर्द की दास्ताँ

समझ आता नहीं , पर दर्द होता है
किसी से पूछ के देखो, दर्द का भी एक शमा होता है !

दर्द !, दर्द से प्यार नहीं किसी को
दर्द से ऐतबार नहीं किसी को
सुकून चाहिए, एक याद चाहिए ,
मगर बिना कुछ खोये , कुछ मिलता नहीं किसी को

वैराग है ये दर्द , अल्फाज है ये दर्द
कोई एकाकी , कोई कहानी है ये दर्द
दर्द के कई रूप हैं , कई रंग हैं
कभी कोई आवाज, कोई याद है दर्द
मुकम्मल होता है सभी को कभी ना कभी
पर सदा के लिए किसी के पास ना ठहरता है ये दर्द

एक कहानी सबकी है यहाँ , खुशी की, दुःख की
आशा-निराशा सबके पाले में है, किसी उम्मीद की
नजर मिलाकर नजर चुराने में माहिर हैं सब
बस यही एक दास्ताँ है यहाँ हर एक दर्द की


हमने भी पूछ ही लिया आखिर एक बार दर्द से
क्या कोई पुराना हिसाब बाकी रह गया है मुझसे
दर्द ने मुस्कुरा कर बोला , "मैं तो साकी तेरा "
तुम मुझसे और मैं तुमसे ही हूँ यहाँ पूरा
अगर मैं ना आऊँ , तो खुद की ताकत पहचानोगे कैसे
जो घर ना करूँ , दिल को कठोर बनाओगे कैसे
सबने जग में पहचान पाया , पर ना मुझे किसी ने अपनाया
 मैं तो साकी तेरा, हमदर्द बन मैंने बस अपना फ़र्ज निभाया

यूँ तो , दर्द का कहना भी सही है
होकर , ना होकर भी वो सही है
जाते-जाते बस उसने इतना ही कहा
" हँसता , मुस्कुराता , मस्तीवाला जीवन ही यहाँ सही है !"

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