Saturday 13 January 2018

अपने सपने कैसे छोड़ दूँ

अपने सपने कैसे छोड़ दूँ
बस इत्ती सी मुसीबत में
देखा है ना जाने कब से
रातों में , राहों में, आँखों में
बस तेरे कहने से छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

कभी हमने, कभी इसने ढोया है मुझे
जो टूट गया कभी, हौसला दिया है मुझे
जब सब थे खफा मुझसे , ये साथ था
हर हाल, हर वक़्त, हर सबब में साथ था
भला कैसे मैं अपने इस यार का साथ छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

जिसको मैंने अपना माना, जिससे मेरी पहचान होगी
जिसके सफल होने, ना होने की, पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी
कर्तव्य परायण से मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ
कर्म की पराकाष्ठा पे मैं कैसे रुक सकता हूँ
आज एक हवाला देकर कहते हो छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

जो मेरा मकसद था , जो मेरा जीवन है
जिसके बिना इस नाचीज़ का, ना कोई अस्तित्व है
जिसने इसको सँवरना सीखाया
जिसने इसको उड़ना सीखाया
जिसने इसको बनना सिखाया
जिसने इसको राह दिखाया
बस इसलिए कि वक्त हमारा मुकम्मल नहीं , इसे छोड़ दूँ
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

नजर की बारीकियों में जो बसता है
उसे कैसे मैं, बेघर कर दूँ
आँखों की तफ़्तीश , बिन जिसके सूनी है
उसे कैसे मैं, उसके हक़ से अलग कर दूँ
अब तुम ही बताओ भला
अपने सपने कैसे छोड़ दूँ !

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