काश!
काश मैं वैसा ही होता
काश तुम वैसी ही होती
काश ये पल वैसा ही होता
काश ये आज वैसा ही होता
मगर ये काश तो बस काश है
एक अफसोस है एक देरी की
एक दर्द है , एक नासमझी की
आज सच है , यहाँ मेरे होने की
काश कि वक्त थोड़ा ठहरा होता
काश कि उम्र थोड़ा समझदार होता
काश कि चिंता ना होती कल की
काश कि भ्रम ना होता कल का
देर कर दी थी मैंने जताने में
देर कर दी तुमने भी बताने में
देखो ये याद भी कितना बेवफा निकला
भुला दिया यथार्थ को खुद को बनाने में
काश कि वक्त को थोड़ा पढ़ना आता
काश कि ख़ामोशी को थोड़ा जानना आता
काश कि आँखें खुलती तेरी बाँहों में
काश कि मुझको तेरा होना आता
एक जिंदगी है तेरे बगैर , एक है संग तेरे
एक समय का सच है , एक है ख्वाब मेरे
एक पिटारा है गुफ्तगू का दो दिल में
एक में चेहरा तेरा है , दूसरे में है मेरे
काश कि वो वक्त फिर से आता
काश कि ये मोहब्बत एक बार और होता
काश कि तुमको साँसों को गढ़ना आता
काश कि मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा होता
काश! काश कि ये काश शब्द जेहन में ना होता
काश! काश कि ये काश का कोई अर्थ ना होता !
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