Saturday 6 November 2021

तेरे चेहरे में ही मेरा दिन रात क्यूँ है

मुसलसल तू मेरे ख्यालों में क्यूँ  है 
हर बातों में तू , यूँ बेवजह क्यूँ  है 
जो नाम तेरा न लूँ , फिर न बातें करूँ 
तेरे चेहरे में ही मेरा दिन रात क्यूँ है 
बिन तेरे मेरा क्यूँ लगे न जिया 
न जानूँ मैं , मैंने क्या है किया 
मैं हूँ जो बेहाल , तू भी क्या बेहाल है 
तेरे चेहरे में ही मेरा दिन रात क्यूँ है ... 

इल्तिजा ये मेरी, किसी कहानी से कम नहीं 
तेरी ये बेरुखी, मेरी ख़ामोशी से कम नहीं 
बेख्याली में मैं , अपनी राहत तुझमें  ढूँढू 
इस जां की सुकूं की इब्तिदा तू ही क्यूँ है 
दर्द तुमसे मिले , दर्द में तुझे ही ढूँढू 
जो लिखूँ आजकल , बस तुझे ही लिखूँ 
उँगलियों की ये बंदिशें क्यूँ है ... 

साँसें जो भी है मेरी , रहे तेरी तलक 
मैं जमीं ही रहूँ , तू हो मेरी फलक 
संग तारों के जो तू चाँद हो , रहूँ तेरा सूरज 
कुछ और पाने की फिर न हो कुछ गरज़ 
साथ यूँ ही रहे , हर पल हर जगह 
है ये दिल की आरज़ू , जिसमें बस तू है ... 

एक चाहत धागा का , एहसास के डोर से है जुड़ी 
गूँथूँ जो माला मैं , उलझनों में तू है 
नाम है मेरा जहाँ , वहाँ तेरा भी नाम है 
हूँ मैं सबका मगर , मुझमें कमी बस  तू है 
होश होता है क्या , आजकल मुझे न है खबर 
मुझको जो भी है अदा  , सबका पता तू क्यूँ है ...  

No comments:

Post a Comment