Abhilash Paswan
होकर रक़ीब के भी तुम, हो न पाओगे
हो कर बेवफ़ा यहाँ , तुम न जी पाओगे
करके बर्बाद मुझे, तुम क्या पाओगे
छोड़ कर मुझे यूँ , तुम कहाँ जाओगे
करके बर्बाद मुझे .....
होकर रक़ीब के भी तुम, हो न पाओगे
हो कर बेवफ़ा यहाँ , तुम न जी पाओगे
करके बर्बाद मुझे, तुम क्या पाओगे
छोड़ कर मुझे यूँ , तुम कहाँ जाओगे
करके बर्बाद मुझे .....
हक़ तुझपे ही एक अपना मैंने माना है
जाना जितना भी किसी को तुमको ही जाना है
तकदीर मेरी तुझमें ही खुलती , तुझमें ही सिमटती है
तेरी धड़कनों को भी सुकूँ , मिल मुझसे ही मिलती है
होकर आज अनजान मुझसे , मुहाज़िर हो क्या पाओगे
करके बर्बाद मुझे .....
निगाहों की निगाहों से क्यूँ इतनी दूरी है
बिन अमावस के चाँद की ये कौन सी मजबूरी है
फलक पे खिलने वाली एक कहानी अभी है अधूरी
तेरे-मेरे साँसों के बंधन बिन ये न हो सकती है पूरी
सिलसिला मुलाकातों का तुम यूँ न तोड़ो
तोड़ो मेरा दिल मगर, जज्बातों की आस न तोड़ो
फासले कुछ पल के हैं मगर, कुछ पल की ही दूरी है
मुझे यूँ खोने की तुम्हें , ये कौन सी मजबूरी है
करके मेरी जां की तिजारत , तुम क्या पाओगे
करके बर्बाद मुझे ....
मेरे ख्यालों पे तेरी , तेरे ख्यालों पे हक़ मेरा है
तुम्हारे मेरे दिल में ही तो हम दोनों का बसेरा है
ठुकराकर ताकीद मेरी मोहब्बत का , भला क्या पाओगे
मुझ बिन जी कर भी तुम क्या जी पाओगे
करके बर्बाद मुझे ....
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