Tuesday 2 November 2021

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो ....

-Abhilash Paswan 

चोट खाया है दिल, लब भी खामोश है 

 बहने को आज  ये आँसू भी मजबूर है 

अपना-पराया का अब है यहाँ कुछ ग़म नहीं 

है नहीं है मेरा , हाँ तुझ पर कोई हक़ नहीं 

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो 

मुंतज़िर आँखों को चेहरे की कैद से रिहा कर दो 

जी रहें हैं अब हम कैसे, तुम्हें क्या खबर 

जो न हो मुझमें तुम , मुझे मुझसे रिहा कर दो 

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो .... 


साँसों की साँसों से गुफ़्तगु क्या तुम्हें याद है 

होठों की होठों से हठ क्या तुम्हें याद है 

नजरों की नजरों से कहासुनी क्या तुम्हें याद है 

बेजुबां दिल की दिल से की बात क्या तुम्हें याद है 

है नहीं कुछ याद तो क्या , भूलने की सज़ा कर लो कबूल 

आकर बाँहों में भरकर इश्क ये मेरा फिर से कर लो कबूल 

जिरह न करो फिर से यूँ , विरह से मुझे मुक्त कर दो 

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो .... 


बिन तुम्हारे जीना , जीना हमने सीखा नहीं 

होना तुम्हारा, के सिवा, हमने कुछ सीखा नहीं 

जो जिया अब तक है , लो वो भ्रम तोड़ दो 

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो .... 


बंजारा हूँ मैं अब , मुंतशिर है तकदीर मेरा 

बची धड़कनों की  मियाद पे है आखिरी हक़ तेरा 

लो जी लो इसे , या सदा के लिए क़त्ल कर दो 

इश्क है ये खता , तो लो सर कलम कर दो .... 

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