Thursday 23 July 2015

बातों को लगा तेरी

बातों को लगा तेरी.……………

                        -अभिलाष कुमार पासवान
बातों  को लगा तेरी लबों  पे अपने घूमता हूँ मैं
माँगता हूँ साँस खुदा  से बस मिलने तक , तेरे इंतज़ार में ज़िंदा हूँ मैं

भूला ना सका अपनी यादों से तुम्हे , गुनहगार हूँ मैं
कल जब था नजरों का शीशा तुम्हारा , उस  पल का कर्ज़दार हूँ मैं
चाह  तो थी मेरी भी आसमां से परे एक नई दुनिया में जाने की
हक़ीकत  न सही ख्वाब तो जिया हूँ  संग तेरे , एहसानमंद हूँ मैं

होके जुदा तुमसे आज , है फिर भी ज़िंदा कहीं मुझमे तू
चाहा यादों को भी मिटाना ,पर साँस  में बस ज़िंदा है तू
आती है घूम घूम कर पहर मुझसे पूछने पता तुम्हारा
तरस है उसे भी मुझपर , जानता है तन्हाई में नाम है तुम्हारा

गुजरेंगे पल वैसे ही, गुज़र रहे जो आज अभी
छोड़ना ना नाराज़गी तू , ये तो  इश्क़ का है सच्चा गहना यहाँ
तड़प होगी पल पल यहाँ, गुजरे पल कसक बन है संग अभी
माँगना ना दुआ कभी मेरे लिए , तेरी नाराज़गी मेरा जूनून है यहांँ

देता है दर्द आँसू  जरूर , मगर खुद्दारी रोने नहीं देती
पुकारता दिल हर बार तुझे , बस जुबां उसे आवाज़ नहीं देती
तरसते है कान सुनने वो आवाज़ , आँखें भी रास्ता तकता है
दिल भी है मज़बूर कहीं , अब कोई इश्क़ की इज़ाज़त नहीं देती  

No comments:

Post a Comment