Friday 23 May 2014

woh kehte hain baarish ki pehli boond ko dharti se pyar hai.......

वो कहते हैं शिकवे हैं हमसे , पर प्यार उसी से है,
उलझन भरी इस दिल को आज इकरार उसी से है ,
धरती और बारिश की वह पहली बूँद की इश्क़ समझ ना पाया कभी-
और आज कहते हैं दीवानगी ये इश्क़ की उसी से है ,

वह कहते हैं, उसकी झुकी नज़र को हम निगाहें  कहते है ,
बिखेरे जो जुल्फ़े वो आज यहाँ  सावन की घटा लगते है ,
धरती और बारिश की वह पहली बूँद की इश्क़ समझ ना पाया कभी-
आज फिर भी गर्व से कहते हैं, उसकी आँखोँ  में  इश्क़ ढूँढ़ते  है,

वह कहते हैं,हम मयस्सर शमा में चिराग ढूँढ़ते है ,
अपनी ज़िंदगी में होने को उसपर फ़ना चाहते है ,
धरती और बारिश की वह पहली बूँद की इश्क़ समझ ना पाया कभी-
फिर भी आज चाहत में चाहना एक नाम चाहते है,

वह कहते हैं , उसकी गालोँ से लाली सूरज उधार लेते है,
उसकी रसीली होठोँ  से ये दिल इक  मिठास उधार लेते हैं ,
धरती और बारिश की वह पहली बूँद की इश्क़ समझ ना पाया कभी-
और आज इस दिल के रिश्ते में एक इश्क़ एक जूनून गढ़ते हैं ,

वह कहते हैं, बारिश की पहली बूँद को धरती से प्यार है ,
दिल न है दोनो के पास फिर भी आज इक इकरार है ,
हम तो है दिलवाले , उस दिल से हमें प्यार है … प्यार है ....प्यार है .......  

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