Thursday 22 May 2014

its a iiser effect

बुलाती है खुशियाँ बाहें बिछाए जिसे वह खुद ज़िन्दगी  कहती है
हर पल को कर नाम उसके ज़िंदा रहने का एक एहसास कराती है  
गुज़रती है तंग गलियोँ  में एक उम्मीद के किरण के साथ हर पग मे 
कि मिल ही जायेंगे रास्तें  बड़े विचरते हुए इन मश्हूर  तंग गलियोँ  में
पर फिर भी है अनभिज्ञ एक तथ्य से की एक दुनिया और कहीं बसी है 
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी न समझ जहाँ सिर्फ पाने को एक नाम  होड़ लगी है 
है आबाद वहाँ हर कुछ पर है ना  चैन वहां की बेशकीमती जीवनशैली में 
जिंदगी का कोई मोल नहीं  वहां करते मेहनत अनचाहे चरवाहे जैसी शैली में 
मिला एक वहां के भक्त प्रिये से रूककर बोला चलो आज ख़ुशी की ज़िन्दगी जीते हैं 
मिला जवाब बड़ा अचंभित समय कहाँ है आज यहाँ अभी मेरे पास काम काफी बचा हुआ है 
रुक थोड़ा हंसकर बोला - इसपर आइज़र का गुमान चढ़ा है …गुमान चढ़ा है …गुमान चढ़ा है  .......... 

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