बुलाती है खुशियाँ बाहें बिछाए जिसे वह खुद ज़िन्दगी कहती है
हर पल को कर नाम उसके ज़िंदा रहने का एक एहसास कराती है
गुज़रती है तंग गलियोँ में एक उम्मीद के किरण के साथ हर पग मे
कि मिल ही जायेंगे रास्तें बड़े विचरते हुए इन मश्हूर तंग गलियोँ में
पर फिर भी है अनभिज्ञ एक तथ्य से की एक दुनिया और कहीं बसी है
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी न समझ जहाँ सिर्फ पाने को एक नाम होड़ लगी है
है आबाद वहाँ हर कुछ पर है ना चैन वहां की बेशकीमती जीवनशैली में
जिंदगी का कोई मोल नहीं वहां करते मेहनत अनचाहे चरवाहे जैसी शैली में
मिला एक वहां के भक्त प्रिये से रूककर बोला चलो आज ख़ुशी की ज़िन्दगी जीते हैं
मिला जवाब बड़ा अचंभित समय कहाँ है आज यहाँ अभी मेरे पास काम काफी बचा हुआ है
रुक थोड़ा हंसकर बोला - इसपर आइज़र का गुमान चढ़ा है …गुमान चढ़ा है …गुमान चढ़ा है ..........
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